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SinMahavir dain AradhanaKendra
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बारा विकसित श्वेत कमल के समान सुन्दर और रोमावली से युक्त होता था । इनकी भौहें नम्र धनुष के आकार की होती थीं और मनके केश काले और सुन्दर श्रेणी में स्थित होते थे। वे दीर्घ और सुनिष्पन्न होने थे। इनके कान पचित प्रमाण वाले यानी न तो बहुत बड़े और न बहुत छोटे होते थे। वे कानों के ताग भली भौति शब्दों को सुन सकते थे। इनके गाल मोटे होते थे। इनका ललाट अष्टमी के चन्द्रमा के समान विस्तृत और सुन्दर होता था । इनका मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान पूर्ण और सुन्दर होता था । इनका शिर छत्ता के ममान वल होता था । इनके शिर का अमभाग लोहे के मुदगर की तरह घन और स्नायुभों मे मजबूत बँधा हुआ शुभलक्षणों से पूर्ण कूटागार के तुल्य नपमारहित और वर्तुल होता था। इनके मस्तक का चर्म, अग्नि में तपाये हुए सुवर्ण की तरह रक्त वर्ण होता था। इनके शिर के केश शामली वृक्ष के फल की तरह छोटे और घन होते थे तथा कोमल, निर्मल, सूक्ष्म, चिकने, अत्यन्त सुगन्ध, सुन्दर और लक्षण युक्त होते थे। एवं भुजमोचक रत्न, भृङ्ग, नीलमणि, फजल और प्रसन्न भ्रमर की तरह वे काले होते थे। वे परस्पर जुड़े हुए कुछ वक्र और वाहिनी ओर फिरे हुए होते थे। वे पुरुष स्वस्तिक आदि शुभ लक्षण तथा माष तिल आदि व्यञ्जन एवं क्षमा आदि गुणों से युक्त होते थे। उनके शरीर तथा अङ्गों के मान और उन्मान पूर्ण रूप में होते थे। तथा वे जन्म सम्बन्धी दोषों से वर्जित होते थे। उनकी आकृति सौम्य होती थी और नके दर्शन से प्रेम सत्पन्न होता था। उनका वेष स्वभाव से ही उत्तम होता था। उनके दर्शन से चित्त में प्रसन्नता होती थी। तथा नेत्र देखने में परिश्रम अनुभव नहीं करते थे। वे अत्यन्त कमनीय होते थे। उनका रूप असाधारण होता था। उनका रूप देखने वाले को प्रतिक्षण नया नया प्रतीत होता था। उनके कराठ का स्वर नदी के प्रवाह के समान गम्भीर और मेघ की तरह दीर्घ होता था। वह हंस के स्वर की तरह मधुर और कौरव पक्षी के स्वर की तरह दीर्घदेश व्यापी होता था। तथा नन्दी यानी बीणा समूह के शब्द की तरह मधुर होता
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