Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 46
________________ Sun Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir सभी बुराइयाँ बढ़ती जा रही है। आज कल लेने के लिये दूसरा और देने के लिये दूसरा तुला यानी वाट (तोलने का परिमाण) बनाया जाता है तथा लेने के लिए दूसरा और देने के लिए दूसरा माप भी निर्माण किया जाता है, एवं राजकुल भी विविध प्रकार का अन्यायकारी होगया है इस कारण वर्ष भी दुःखद हो गये हैं। वर्ष जच दुःखद हो जाते हैं तो औषधि थानी गेंहू आदि अन्न भी बलहीन होजाते हैं और अन्न के बलहीन होने से प्राणियों की आयु शीघ्र ही क्षीण हो जाती है। इस प्रकार कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा के समान निरन्तर क्षीण होते हुए प्राणि-समाज में धार्मिक मनुष्यों का ही जीवन सफल समझना चाहिये ।। ५०-५४ ।। आउसो ! से जहा नामए केइ पुरिसे यहाए कयबलिकम्मे कयकोऊय मंगलपायच्छित्ते सिरसिराहाए कंठे मालाकडे आविद्धमणि सुवराणे अहय सुमहग्धवस्थ परिहिए चंदणोकिएणगायसरीरे सरससुरहिगंध गोसीस चंदणाणुलित्तगचे सुइमालावरणगविलेवणे कम्पियहारदहार तिसरयपालंब पलंबमाणे कडिसुत्तयसुकयसीहे पिणगेविज्जअंगुलिज्ज गललियंगयज्ञलियकयाभरणे णाणामणि कणगरयणकडगतुडियर्थभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जीवियाणणे मउडदिएणसिरए हारुत्थयसुकयरइयवच्छे पालंब पलंबमाण सुकयपडउत्तरिज्जे मुहियापिंगलंगुलिए गाणामणिकरणगरयण विमल महरिहनिउणोविय मिसिमिसंत विरइयसुसिलिट्टविसिठ्ठलड आविद्धवीर बलए । किं पहुणा कप्परुक्खोविव अलंकिय विभूसिए सुइपयए भवित्ता अस्मापियरो अभिवाययिज्जा । तएणं तं पुरिसं अम्मापियरो एवं वइज्जा जीव पुत्ता ! वाससयं ति, तंपियाई तस्स नो बहुयं हवइ । कम्हा ? वाससयं जीवतो बीसं जुगाई जीवइ, वीसई जुगाई जीवंतो दो अयण सयाई जीवइ, दो अयणसयाई जीवंतो छ उउसयाई जीवइ, छ उउसयाई जीवंतो बारस मास सयाई 130333233333333333333333314351628329125 For Private And Personal use only

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