Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 51
________________ ShaMahanirain AradhanaKendra Acharya Shri Kasagarur amander कवन होता है। ऐसे बत्तीस कवलों में एक पुरुष का आहार पूर्ण होता है और अठाईस कवलों में स्त्री का माहार पर्याप्त होता है। तथा चौबीस कवनों में नपुसक का आहार पूर्ण होता है। धान्य से पूर्ण और नीचे की घोर किया हुआ मनुष्य का हाथ ( मुट्ठी) असती कहलाता है। ऐसे दो असती का एक प्रमृति प्रमाण होता है और दो प्रमृति प्रमाण का एक सेतिका प्रमाण होता है और चार सेतिका प्रमाण का कुडव होता है। चार कुडव का एक प्रस्था होता है भीर चार प्रस्था का एक मादक होता है। साठ बाढक का एक जघन्य कुम्भ भीर अस्सी पाढक का मध्यम कुम्भ एवं सौ यातक का सत्कृष्ट कुम्भ होता है और पाठ सौ थाढकों का एक पाह प्रमाण होता है। इस पाह प्रमाण से मनुष्य सी वर्ष में साढ़े बाईस वाह भनखा जाता है। ते य गणिय निदिहाचत्तारिय कोडीसया, सदिचेव य हवंति कोडीयो। असीई य तंदुलसयसहस्सा (४६०८०.००००), हवंति त्ति मक्खाय।। ५५ ॥ तं एवं अद्भतेवीसं तंदुलबाहे भुजतो अद्धछ8 मुग्गभे भुजह, अद्धछठे मुग्गकु'भे भुजंतो चउवीसं नेहाढग सयाई झुंजइ, चउत्रीसं नेहादगसयाई भुजतो छत्तीसं लवण पलसहस्साई भुंजइ । छत्तीसं लवण पलसहस्साहं भुजंतो छप्पडग साडगसयाई नियंसेह दो मासिएण परियट्टएणं, मासिएण वा परियङ्कएण वारसपड साडग सयाई नियंसेह। एवामेव थाउसी! बास सयाउयस्स सव्वं गणियं तुलियं मवियं ,नेह लवण भोयण बायणं वि ॥ एवं गणियप्पमाणं दुविहं भणियं महरिसीहिं जस्सस्थि तस्स गुणिजह जस्स नस्थि तस्स किं गणिजद For Private And Personal Use Only

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