Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 31
________________ san Manavi din Aranana Kendre www.kobatirm.org Acharya Sur Kassegarmur Gyarmandir भावार्थ-दशवी दशा के आने पर मनुष्य का स्वर, हीन और दूसरी तरह का हो जाता है । वह दीन बन जाता है तथा उसका चित्त भी पहले के समान नहीं रहता। वह दुर्बल और दुःखी होकर सोता रहता है। दसगस्स उपक्खेवो, बीसइवरिसो उ गिण्हई विजं । भोगा य तीसगस्स य, चत्तालीसस्स विएणाणं ॥४२॥ छाया-दशकस्योपत्तेपः, विशतिवर्षस्तु गहणाति विदधा । भोगाश्च त्रिंशत्कस्य, चत्वारिंशकस्य विज्ञानम् ॥४२॥ भावार्थ-मनुष्य जब दश वर्ष का होता है तब उसका मुण्डन एवं उस अवस्था के योग्य दूसरे उत्सव आदि किये जाते हैं। जब वह बीस वर्ष का होता है तब विद्या का प्रहण करता है एवं तीस वर्ष का होने पर भोगों को भोगता है और चालीस वर्ष का होकर विज्ञान से युक्त होता है। पण्णासगस्स चक्खू हायइ, सढिकयम्स बाहुबलं । भोगा य सत्तरिस्स य, असीइगस्स य विएणायं ॥४३॥ छाया-पञ्चाशत्कस्य चत्तहीयते, षष्टिकस्य बाहुबलं । भौगाश्च सप्ततिकस्य, अशीतिकस्य च विज्ञानम् ।।४३।। भावार्थ-मनुष्य जब पचास वर्ष का होता है तब उसकी दृष्टि कमजोर हो जाती है और जब साठ वर्ष का होता है तब उसका बाहुबल घट जाता है। जब वह सत्तर वर्ष का होता है तब भोग भोगने की शक्ति जाती रहती है और अस्सी वर्ष का होने पर ज्ञान शक्ति अल्प हो जाती है। नउई नमइ सरीरं, बाससए जीवि चयइ । कित्तिभो ऽत्थ सुदो भागो, दुहो भागो य कित्तियो॥४४॥ छाया-नयतिकस्य नमति शरीरं, वर्ष शते जीवितं त्यजति । कीर्तितोऽत्र सुखभागः, दुःखभागश्च कीर्तितः ॥४४॥ भावार्थ-यह मनुष्य जब नब्वे वर्ष का होता है तब उसका शरीर नम जाता है यानी झुक जाता है और सौ वर्ष का होकर मर JERRIERHEACHEHEREHEASTERSHSHESTEHSSCIASISASARTESE For Private And Personal Use Only

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