Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 22
________________ SA.Mahavir Jain AradhanaKendra www.kohatiram.org Acharya Sa K asagarmur Gyarmandir है। ऐसे समय में मृत्यु को प्राप्त हो कर बह जीव देवलोक में उत्पन्न होता है इसी कारण मैंने यह कहा है कि-हे गौतम ! कोई गर्भगत जीव स्वर्ग लोक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता है ॥८॥ जीवेणं भंते ! गभगए समाणे उत्ताणए वा पासिन्लए वा अंबसुज्जएवा अच्छिज्ज वा चिट्ठिज्ज वा निसीज्ज वा तुयट्टिज्ज वा आसइज्ज वा माउए सुयमाणीए सुयइ जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहिमओ हवइ दुहियाए दुहिओ (दुक्खिो ) हवइ ? हंता गोयमा ! जीवेणं गभगए समाणे उताणए वा जाव दुहियो (दुक्खियो) हवइ ।। सूत्र'६॥ छाया-जीवो भदन्त । गर्भगतः सन् उत्तानको वा पार्थशायी बा आम्रकुन्जको था आसीत या तिष्ठेद्वा निषीदेवा त्यग्वर्तयेद्वा भापयति या शयीत या मातरि शयानात्यां शते जाया जागतिं था सुखितायो सुखितो भवति दुःखिताया दुःखितो भपति । हन्त । गौतम । जीवो गर्भगतः सन् उत्तानको वा यावत् दुःखितो भयति ॥६॥ भावार्थ-हे भगवान् ! गर्भ में रहा हुआ जीव कभी उत्तान होकर रहता है या नहीं तथा यह कभी बगल से सोकर रहता है या नहीं एवं वह कभी आम्रफल की तरह झुककर रहता है या नहीं ? वह कभी बैठता है या नहीं ? कभी लेटता है या नहीं तथा वह कभी करवटें बदलता है या नहीं ? वह गर्भ के मध्यप्रदेश में आता है या नहीं ? वह कभी सोता है या नहीं ? वह माता के शयन करने पर सोता है या नहीं तथा उसके जागने पर जागता है या नहीं ? वह माता के सुख से सुखी और दुःख से दुःखी होता है या नहीं ? उत्तरहाँ, गौतम ! गर्भगत जीव ये पूर्वोक्त सभी बातें करता है। थिरजाय विहु रक्खइ, सम्म सारक्खई तो जणथी। संवाहई तुपद, रक्खइ अप्पय गभ य॥१०॥ For Private And Personal use only

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