Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 14
________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Kellegagamur yanmandir जीवस्स यं भंते ! गम्भगयस्स समाणस्स अस्थि उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेइ वा सिंघाणेइ वा तेइ वा पित्तेइ वा सुक्केइ वा सोणिएइ वा ? णो इणडे समढे । से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ जीवस्स णं गभगयस्स समाणस्स नस्थि उच्चारह चा जाव सोणिएइ वा । गोयमा ! जीवेणं गम्भगए समाणे जं आहारं आहारे त चिणाइ सोईदियत्ताए चक्खुरिदियत्ताए घाणिदियत्ताए जिभिदियत्ताए फासिंदियत्ताए अद्विअद्विमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए। से एएणं अट्ठणं गोयमा! एवं बुबह जीवस्स णं गम्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारेह वा जाव सोणि एह वा ॥ सूत्र ३॥ 38EUNESSERESESSUESE ESMESES छाया-जीवस्य भदन्त ! गर्भगतस्य सतोऽस्ति उच्चारो वा प्रश्रवणं वा खेलो वा सिंघानो का वान्तं वा पिरा वारा वा शोणितं वा ? नायमर्थः समर्थः । तत्केनार्थेन भदन्त एव! मध्यते जीवस्य गर्भगतस्य सतो नास्ति उच्चारो वा यावत् प्रक्यवणं वा ? गौतम ! जीवः गर्भगतः सन् यमाहारमाहारयति स चिनोति श्रोत्रेन्द्रियतया चक्षुरिन्द्रियतया घाणेन्द्रियतया जिव्हेन्द्रियतया स्पर्शन्द्रियतया अस्श्यस्थि मज्जा केशश्मश्रु रोमनस तया । तद् एतेनार्थे न गौतम ! एव मुच्यते जीवस्य गर्भगतस्य सतो नास्ति उच्चारो यावत्शोणितं या ॥३॥ भावार्थ:-हे भगवन ! गर्भवासी जीव मल मूत्र करता है या नहीं ? तथा उसके खंखार, नाक का मल, वमन, पित्त, वीर्य और रक्त होते हैं या नहीं ? हे गौतम ! ये सब गर्भवासी जीव के नहीं होते। हे भगवन् ! क्यों नहीं होते ? हे गौतम ! गर्भगत जीव जो आहार करता। बहभाहार भोत्र,चनु, प्राणा, रसन, स्पर्शेन्द्रिय तथा हट्टी, मजा, केश, दादी, मूंछ, रोम और नखरूप में परिगात हो जाता है। इसलिए गर्भगत जीव के पूर्वोक्त विधा भादि नही होते हैं ।। ३ ।। For Private And Personal use only

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