Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ SinMahavirdain ArmdhanaKendra www.kobatiram.org Acharya Sur Kellegagamur yanmandir १६००००० निव्वत्तइ विणा केसमंसुणा, सहकेसमंसुणा अट्ठाओ रोम कूवकोडीओ ३५०००००० निव्वत्तइ । अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो इवई ।। मूत्रं ।।२।। छाया-तत्प्रथमे मासे कोंन पले जायते । द्वितीये मासे पेशी सजायते धना। तृतीये मासे मातुदोहदं जनयति । चतुर्थे मासे मातुरङ्गानि पीणयति । पञ्च पिण्डिकाः पाणी पादौ शिरश्चैव निर्वर्तयति । षष्ठे मासे पित्तशोणित मुपचिनोति । सप्तमे मासे सप्तशिराशतानि पञ्च पेशीशतानि नब धमनीः नवनवतिश्च रोमकूपशत सहस्राणि निवर्तयति विना केश श्मभिः । सह केशश्मश्रुभिःसा ः रोमकूपकोटी: निर्वर्तयति, अष्टमे मासे निष्पन्नप्रायो भवति । भावार्थ-वह शुक और शोणित दिनोदिन बदलता हुआ प्रथम मास में एक कर्ष कम एक पल का होजाता है। पाँच गुजा का एक मासा होता है और सोलह मासा का एक कर्ष होता है एवं चार कर्ष का एक पल होता है। इस प्रकार वह शुक शोणित प्रथम मास में तीन कर्ष का होता है यह जानना चाहिये। दूसरे मास में बह मांसपिण्ड बन कर धन और समचतुरस्र हो जाता है। तीसरे मास में वह माता को दोहद उत्पन्न करता है। चौथे मास में वह माता के अङ्गों को पुष्ट करता है। पाचवे मास में दो हाथ दो पैर और शिर उत्पन्न होते हैं। छठे मास में पित्त और रक्त पुष्ट होता है। सातवें मास में १०० नसें, ५०० पेशी और नौ धमनी उत्पन्न होती हैं तथा शिर के बाल और दाढी मूछ के रोम कूपों को छोड़कर ६६००००० रोम कूप उत्पन्न होते हैं। यदि शिर के बाल और दाढी मूंछ के कूपों को शामिल करलें तो साढे तीन कोटि रोमकूप उत्पन्न होते हैं। आठवें मास में वह गर्भ प्रायः पूर्ण होजाता है ।। सूत्र २ ॥ 328382333333333333333333333333333333333 For Private And Personal use only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103