Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam Author(s): Ambikadutta Oza Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha View full book textPage 8
________________ Sun Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatiram.org Acharya Sa K asagarmur Gyarmandir छाया-अष्टी सहस्राणि श्रीणि तु, शतानि मुहूर्तानां पञ्चविंशतिं च । गर्भगती वसति जीयः, नियमाद् हीनाधिकानीतः ॥६॥ भावार्थ-जीव आठ हजार तीन सौ पचीस मुहूत्त तक निश्चय ही गर्भ में निवास करता है, परन्तु वात आदि के प्रकोप से कम या ज्यादा भी हो सकता है। पहले २७७।। दो सौ साढे सत्तहतर अहोरात्र तक गर्भ में निवास का काल कहा गया है। एक अहोरात्र के ३० मुहत होते हैं, इसलिये २७७।। अहोरात्र को ३० से गुणन करने पर ८३२५ संख्या होती है, यही मुहत्तों की संख्या जाननी चाहिये ॥६॥ तिएणेव य कोडीश्री, चउदस हवंति सयसहस्साई । दस चेव सहस्साई, दुएिण सया पएणवीसा य ॥७॥ उस्सासा निस्सासा, इत्तियमित्ता हवंति संकलिया । जीवस्स गम्भवासे, णियमा हीणाहिया इत्तो ॥॥ छाया-तिखश्च कोटयश्चतुर्दश भवन्ति शतसहस्राणि । दश चैव सहस्राणि, द्रं शते पञ्चविंशतिञ्च ॥७॥ उच्छवासा निःश्वासा, एतावन्मानाः भवन्ति सङ्कषिताः । जीवस्य गर्भवासे, नियमाद् हीनाधिका इतः ।।।। भावार्थ-तीन कोटि चौदह लाख दश हजार दो सौ पचीस ३१४१०२२५ उच्छ्वास निःश्वास तक निश्चय जीव गर्भ में निवास करता है परन्तु वात आदि के दोष से कम ज्यादा होना भी सम्भव है। आशय यह है कि-एक मुहूर्त में ३७४३ उच्छ्वास निःश्वास होते हैं । इसलिये गर्भवास काल के ८३२५ मुहूतों का ३७७३ से गुणन करने पर ३१४१०२२५ उच्छ्वास निःश्वासों की संख्या होती है। इसलिये ३१४१०२२५ उच्छवास निःश्वास तक जीव का गर्भ में निवास कहा गया है | For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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