Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam Author(s): Ambikadutta Oza Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha View full book textPage 9
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आउसो ! इत्थीए नाभिहिट्ठा, सिरादुगं पुण्फणालियागारं । तस्स य हिड्डा जोखी, अहोमुहा संठिया कोसा ॥६॥ छाया - आयुष्मन् ! स्त्रियाः नाभेरधः, शिराद्विकं पुष्पनालिकाकारम् । तस्य चाघो योनिः, अधोमुखा संस्थिता कोशा ॥६॥ भावार्थ- हे आयुष्मन् गौतम ! स्त्री की नाभि के नीचे फूल की खंडी के समान आकार वाली दो नाडियाँ होती हैं। उन नाडियों के नीचले भाग में योनि होती है। उस योनि का मुख नीचे की ओर होता है और वह तलवार के म्यान के समान होती है || ६ || तस्स य हिट्ठा चूयस्स, मंजरी (जारिसी ) बारिसा उ मंसस्स । ते रिउकाले फुडिया, सोशियलवया विमोयंति ॥१०॥ छाया - तस्याश्चाधः चुतस्य, मजर्यो (यादृश्यः) तादृश्यस्तु मांसस्य । ता ऋतुकाले स्फुटिताः, शोणित लवकान् विमुञ्चन्ति ॥ १०॥ भावार्थ- - उस योनि के नीचे आम की मञ्जरी के समान मांस की मञ्जरी होती है, वह मञ्जरी ऋतुकाल में फूट जाती है, इसलिये उससे रक्त बिन्दु का पतन होता है ||१०|| कसाया जोगि संपत्ता, सुकमीसिया जया । तझ्या जीबुववाए, जुग्गा भणिया जिगिदेहिं ॥ ११५ छाया कोशाकारी योनिं सम्प्राप्ताः शुक्रमिश्रिताः यदा । तदा जीवोत्वादे, योग्या भणिता जिनेन्द्रः ॥११॥ भावार्थ-वे रुधिरविन्दु पुरुष के संयोग से शुक्रमिश्रित होकर जब कोश के समान आकार वाली स्त्री की योनि में प्रवेश करते हैं, तब वह स्त्री जीव के उत्पन्न करने योग्य होती है, यह जिनवरों ने कहा है || ११ || बारस चेव मुहुत्ता, उवरिं विद्वंस गच्छई सा उ । जीवार्ण परिसंखा, लक्खपुहुत्त य उक्कोर्स || १२|| For Private And Personal Use Only 16666666666666.USPage Navigation
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