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भूख, प्यास, मल एवं मूत्र त्याग संबंधी सामान्य जानकारी। खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, चिन्तन-मनन, सजगता स्वभाव,
संस्कारों, निर्णय लेने की क्षमता एवं विवेक संबंधी जानकारी। 10. . दृढ़ता, मनोबल की स्थिति, तर्क शक्ति आदि की जानकारी
उपर्युक्त बातों की जितनी सही जानकारी प्राप्त होती है, उतना ही निदान प्रमाणिक और विश्वसनीय हो जाता है। अतः निदान करते समय चिकित्सक का स्वविवेक, अनुभव और समग्र दृष्टिकोण की अहं भूमिका होती है। क्या एक जैसे लक्षणों का संबंध अलग-अलग अंगों से हो सकता है?
अतः जब तक रोग के मूल कारण को मालूम नहीं किया जाता है, तब तक निदान कैसे विश्वसनीय और सही हो सकता है? और ऐसा उपचार स्थायी एवं प्रभावशाली कैसे हो सकता है? ऐसे ही कुछ लक्षणों से विभिन्न अंगों के संबंध का विवरण निम्न तालिका में दिया गया हैरोग के लक्षण
सम्बन्धित अंग 1. मूत्र संबंधी रोग
गुर्दे-मूत्राशय में गड़बड़ी के कारण 2. मल त्याग संबंधी रोग
फेंफड़े-बड़ी आंत अथवा यकृत-पित्ताशय
में गड़बड़ी के कारण 3. नाड़ी की गति सम्बन्धी रोग हृदय-छोटी आंत, पेरीकार्डियन-ट्रिपल
वार्मर में गड़बड़ी के कारण 4. श्वसन संबंधी रोग
फेंफड़े-बड़ी आंत में गड़बड़ी के कारण 5. पसीना संबंधी रोग . . . हृदय-छोटी आंत अथवा फेंफड़े-बड़ी आंत
या गुर्दे-मूत्राशय में गड़बड़ी के कारण 6. भूख संबंधी रोग
यकृत-पित्ताश या तिल्ली- पेन्क्रियाज /
.. आमाशय में गड़बड़ी के कारण 7. वजन संबंधी रोग
यकृत-पित्ताशय तिल्ली-पेन्क्रियाज / आमाशय अथवा पेरिकार्डियन-ट्रिपल वार्मर
में गड़बड़ी के कारण 8. भावनाओं संबंधी रोग
हृदय-छोटी.आंत अथवा पेरिकार्डियन -मेरूदण्ड (ट्रिपल वार्मर) में असंतुलन के
कारण स्वावलम्बी चिकित्सा प्रभावशाली क्यों?
'मानव शरीर अपने आप में परिपूर्ण है। इसमें अपने आपको स्वस्थ रखने की पूर्ण क्षमता होती है। हम अनुभव करते हैं कि चेतनाशील प्राणियों में मनुष्य जाति का प्रतिशत तो एक से भी कम होता है। बाकी 99 प्रतिशत जीव अपना सहज जीवन
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