Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 72
________________ नियम नियम अथवा सिद्धान्त जीवन की वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो योग के लिए अनिवार्य होती है तथा जो यम के पालन मे सहयोग करते हैं। मुख्य नियम भी पांच हैं। शौच अर्थात् शुद्धता, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान। शौच का मतलब मन, वाणी और काया की पवित्रता अर्थात् आत्मा की विकारों से शुद्धि । संयोग-वियोग, अनुकूल-प्रतिकूल, लाभ-हानि के प्रसंगों पर सदैव प्रसन्नचित्त रहना, विचलित न होना अर्थात् समभाव रखना ही संतोष कहलाता है। सुख दुःख, सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास जैसे कष्टों को आत्म शुद्धि के लिए सम्यक् दृष्टिकोण से की जाने वाली मन, वचन और काया की साधना को तप कहते हैं। तप का मतलब है, जो आत्मा को तुरन्त पवित्र करे। जिस प्रकार अग्नि में सोना तपाने से उसका मैल दूर हो जाता है, सोना शुद्ध हो जाता है। ठीक उसी प्रकार तप की अग्नि से शरीर की इन्द्रियां, मन और आत्मा के विकार भी दूर हो जाते हैं। तप मुख्तया दो प्रकार का होता है। पहला बाह्य तप जिसके द्वारा पांचों इन्द्रियों और मन की बाह्य अशुभ प्रवृत्तियों को त्यागा जाता है। दूसरा है आन्तरिक तप। जो व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाता है। यम नियम के पालन से शरीर के अवयव रसायनयुक्त हो जाते हैं। उनमें रोग प्रतिकारात्मक क्षमता बढ़ जाती है तथा मनोबल मजबूत हो जाता है। विकार दूर हो जाते है। समभाव की प्राप्ति होने से मन और मस्तिष्क में सन्तुलन हो जाता है। जो स्वास्थ्य की आधारशिला होती है। बिना यम नियम के पालन से योग का आंशिक लाभ ही मिलता है। · आसन व्यायाम का ही वैज्ञानिक रूप होता है। आसनों से शरीर के ऊर्जा केन्द्र जागृत होते हैं और शरीर में आवश्यक हारमोन्स बनाने वाली अन्तःश्रावी ग्रन्थियां बराबर कार्य करने लगती है। आसनों के अलावा प्रायः अन्य कोई ऐसा सरल . व्यायाम नहीं होता जिससे शरीर के सभी अंगों की यथोचित कसरत हो सके। . योग साधकों के लिए अन्य व्यायामों की अपेक्षा आसन ही अधिक उपयोगी होते हैं। आसन में, अन्य पहलवानी जैसे, कठिन व्यायामों जितनी ऊर्जा खर्च नहीं होती, जिसकी पूर्ति के लिए अधिक मात्रा में पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। राजसिक पौष्टिक आहार से इन्द्रियाँ उत्तेजित होती है, वृत्तियाँ राजसिक और तामसिंक बनती है। परन्तु योगी के लिए अल्प सीमित और सात्विक आहार लेने का ही विधान होता है। अतः योगियों के लिए आसन ही श्रेष्ठता व्यायाम होता है। नियमित करणीय आसन गोदुहासन 3ासत. गोदुहासन में दोनों पंजों के बल बैठा जाता है। इस आसन में जितना .-71 .

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