Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 82
________________ उद्देश्य प्राप्ति का मूलाधार होती है। सकारात्मक भाव पैदा होते हैं, जिससे शरीर के लिए उपयोगी रसायन पैदा होने लगते हैं। कार्य क्षमता बढ़ जाती है। अशान्ति की आग में आकुल-व्याकुल व्यक्ति के लिए हास्य एक वरदान होता है। जब मुस्कान हँसी में बदल जाती है तो स्वास्थ्य वर्धक औषधि का कार्य करने लगती है। मानव ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसमें हंसने की क्षमता होती है। यह उसका स्वभाव भी है तथा उसके खुशी की अभिव्यक्ति का माध्यम भी। किसी बात पर मुसकराना अथवा हँसना, किसी को देख कर हँसना, कुछ व्यंग सुनकर हँसना, कुछ पढ़कर हँसना, किसी को हँसते हुए देख कर हँसना किसी से मुस्कराते . हुए मिलना, खुशी के प्रसंगों पर मुस्कराना मानव व्यवहार की सहज क्रियाएँ हैं। सच्चा हास्य तोप के गोले की तरह छूटता है और मायूसी की चट्टान को बिखेर देता है। हास्य से रोम-रोम पुलकित होते हैं, दुःखों का विस्मरण होता है, खून में नयी चेतना आती हैं। शरीर में कुछ भाग हास्य ग्रन्थियों के प्रति विशेष संवेदनशील होते हैं। जैसे पगथली, काख, गला आदि। अतः यदि किसी तनाव ग्रस्त, भय ग्रस्त अथवा मानसिक दुःखों से ग्रस्त व्यक्ति के उन संवेदनशील भागों पर आवश्यक सिरहन किया जाए तो अनचाहे हँसी आने लगती है। परिणामवस्वरूप तनाव, भय, चिन्ताओं के विकार शरीर से विसर्जित हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति खुशी का अनुभव करने लग जाता है। हंसी मानसिक रोगों के उपचार का प्रभावशाली माध्यम होता है। हंसी से शरीर में वेग के साथ आक्सीजन का अधिक संचार होने से मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं। जमे हुए विजातीय अनुपयोगी, अनावश्यक तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं, जिससे विशेष रूप से फेंफड़े और हृदय की कार्य क्षमता बढ़ती है। अवरोध समाप्त होने से रक्त का प्रवाह संतुलित होने लगता है। शरीर स्वस्थ एवं बलिष्ठ होने लगता है। हँसी से शरीर में ताजगी आती है। अच्छी स्वाभाविक निद्रा आती है। बुखार दूर हो जाता है। दर्द और पीड़ा में राहत मिलती है। वास्तव में हँसी सभी प्रकार के रोगों में प्रायः लाभकारी होती है। हृदय रोगियों का हास्य सरलतम प्रभावशाली उपचार है। दुःखी चिन्तित; तनाव ग्रस्त, भयभीत, निराश, क्रोधी आदि हँस नहीं सकते और यदि किसी भी कारण से हँसी आती है तो उस समय तनाव, चिंता, भय, दुःख, क्रोध आदि रह नहीं सकते, क्योंकि दोनों एक दूसरे के विरोधी स्वभाव के होते हैं। अतः यदि हम काल्पनिक हँसी भी हँसेंगे तो तनाव, चिंता, भय, निराशा आदि स्वतः भूल जाते हैं। ये ही वे कारण होते हैं जो व्यक्ति को अस्वस्थ, असंतुलित, रोगी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हंसने से शरीर के आन्तरिक भागों की सहज मालिश हो जाती है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ और ऊर्जा चक्र सजग और क्रियाशील होने लगते हैं। जिससे रोग प्रतीकारात्मक क्षमता बढ़ती है। मन में सकारात्मक चिन्तन, मनन . होने लगता है। शुभ विचारों का प्रादुर्भाव होता है। नकारात्मक भावनाएँ समाप्त होने 81

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