Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 86
________________ शरीर मूल रूप से एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र होता है । शरीर की प्रत्येक कोशिका (सेल) विद्युत की एक इकाई है और उसका अपना क्षेत्र होता है । विद्युत के समान सबसे अधिक शक्तिशाली चुम्बकत्व मस्तिष्क में पैदा होता है और वह भी जब व्यक्ति निद्रा में होता है। ये चुम्बकीय क्षेत्र शरीर एवं मन में परिवर्तनों के अनुसार घटते बढ़ते रहते हैं । चुम्बकीय चिकत्सा का मूल मन्त्र यह है कि शरीर में चुम्बकीय क्षेत्रों का संतुलन बनाये रखा जाये। चुम्बकीय सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक चुम्बक में प्रायः दो ध्रुव होते हैं, एक को उत्तरी ध्रुव व दुसरे को दक्षिणी ध् व कहते हैं। सारे आलेख में जहाँ उत्तरी अथवा दक्षिणी ध्रुव की चर्चा की गयी है, वहाँ उपचार हेतु कार्य में लिए जाने वाले चुम्बकों के ध्रुवों को ही समझना चाहिए, न कि भौगोलिक उत्तरी और दाक्षिणी ध्रुव । छड़ी वाले चुम्बक को धागे से बांध सीध ग़ लटकने पर जो किनारा भौगोलिक उत्तरी की तरफ स्थिर होता है, यानि जो पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की तरफ आकर्षित होता है, चुम्बकीय चिकित्सा में उस ध्रुव का दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। बहुत से चुम्बक उत्पादक उस पर (True South Pole) यानी सही दक्षिणी ध्रुव लिखते हैं तथा दूसरा किनारा उससे विपरीत यानी उत्तरी ध्रुव ( True North Pole) होता है। दो चुम्बकों के विपरीत ध्रुवों में आकर्षण होता है तथा समान ध्रुव एक दूसरे को दूर फेंकते हैं। दक्षिणी ध्रुव का प्रभाव गर्मी बढ़ाना, फैलाना, उत्तेजित करना, सक्रियता बढ़ाना होता है, जबकि उत्तरी ध्रुव का प्रभाव इसके विपरीत शरीर में गर्मी कम करना, अंग सिकोड़ना, शांत करना, सक्रियता को नियन्त्रित एवम् सन्तुलित करना आदि होता है। चुम्बकीय ऊर्जा के माँप की इकाई गौस अथवा ओस्टेड के नाम से जानी जाती है। जितना ज्यादा शक्तिशाली चुम्बक होता है, उतना ही अधिक चुम्बकीय धातुओं के प्रति उसका आकर्षण होता है। छोटे बच्चों को कम शक्तिवाले चुम्बक लगाना चाहिये । अन्य व्यक्तियों के चेहरे तथा हृदय जैसे कोमल भाग़ पर प्रायः कम शक्तिवाले चुम्बक लगाने चाहिये । परन्तु असाध्य एवम् भयंकर रोगों में ज्यादा शक्ति वाले चुम्बकों का प्रयोग अनुभवी चिकित्सकों के मार्ग निर्देशन में किया जा सकता है। चुम्बकीय उपचार की मुख्य तीनं विधियाँ हमारे शरीर के चारों तरफ चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र होता है । जिसे आभा मण्डल भी कहते हैं । प्रायः दाहिने हाथ से हम अधिक कार्य करते हैं। अतः दाहिने भाग में दक्षिणी ध्रुव के गुण वाली ऊर्जा तथा बाये भाग में उत्तरी ध्रुव के गुण वाली ऊर्जा का प्रायः अधिक प्रभाव होता है। अतः चुम्बकीय ऊर्जा के संतुलन होने हेतु बायीं तरफ दक्षिणी ध्रुव एवं दाहिनी तरफ चुम्बक के उत्तरी ध्रुव का स्पर्श करने से बहुत लाभ होता है। शरीर के चुम्बक का, उपचार वाले उपकरण चुम्बक से आकर्षण होने लगता है और शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा का संतुलन होने लगता है । परन्तु यह 85

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