Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 96
________________ शरीर पंचभूत का पुतला है। इसी से कवि ने गाया है: पवन, पानी, पृथ्वी, प्रकाश और आकाश, पंचभूत के खेल से, बना जगत का पाश। इस शरीर का व्यवहार दस इन्द्रियों और मन के द्वारा चलता है। दस इन्द्रियों में पांच कर्मेन्द्रियाँ हैं, अर्थात् हाथ, पैर, मुँह, जननेन्द्रिय और गुदा। ज्ञानेन्द्रियाँ भी पांच हैं-स्पर्श करने वाली त्वचा, देखने वाली आंख, सुनने वाला कान, सूंघने वाली नाक और स्वाद या रस को पहचानन वाली जीभ / मन के द्वारा हम विचार करते हैं। कोई कोई मन को ग्यारहवीं इंन्द्रिय कहते हैं। इन सब इन्द्रियों का व्यवहार जब सम्पूर्ण रीति से चलता है, तब शरीर पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है। ऐसा आरोग्य बहुत ही कम देखने में आता है। __ शरीर के अन्दर चलने वाली अदभुत क्रियाओं पर इन्द्रियों का स्वस्थ रहना निर्भर करता है। शरीर के सब अंग नियमानुसार चलें, तो शरीर का व्यवहार अच्छी तरह से चलता है। एक भी अंग अटक जाय, तो गाड़ी चल नहीं सकती। उसमें भी पेट अपना काम ठीक तरह से न करे, तो शरीर ढीला पड़ जाता है। इसलिए अपच या कब्जियत की जो लोग अवगणना करते हैं, वे शरीर के धर्मको जानते ही नहीं / इन दो रोगों से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। महात्मा गाँधी, 29. 8. 1942 स्वराज प्रकाशन समूह

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