Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 88
________________ का प्रयोग प्रतिदिन 2-3 बार किया जा सकता है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि चुम्बकीय प्रभाव से पानी दवाई बन जाता है। अतः उसको सादे पानी की तरह आवश्यकता से अधिक मात्रा में नहीं पीना चाहिये। ___ चुम्बक के अन्य उपचारों के साथ आवश्यकतानुसार चुम्बकीय पानी पीने से उपचार की प्रभावशीलता बढ़ जाती है। अतः चुम्बकीय उपचार से आधा घंटे पूर्व ___ शरीर की आवश्यकतानुसार चुम्बकीय पानी अवश्य पीना चाहिये। चुम्बकीय जल की भांति दूध को भी चन्द मिनट तक चुम्बकीय प्रभाव वाले क्षेत्र में रखा जाये तो, वह शक्तिवर्द्धक बन जाता है। इसी प्रकार किसी भी तेल को 45 से 60 दिन चुम्बकीय क्षेत्र में लगातार रखने से उसकी ताकत बढ़ जाती है। . ऐसा तेल बालों में इस्तेमाल करने से बालों सम्बन्धी रोग जैसे गंजापन, समय से पूर्व सफेद होना ठीक होते हैं। चुम्बकीय तेल की मालिश भी साधारण तेल से ज्यादा प्रभावकारी होती है। जितने लम्बे समय तक तेल को चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में रखा जाता है, उतनी लम्बी अवधि तक उसमें चुम्बकीय गुण रहते हैं। थोड़े थोड़े समय पश्चात् पुनः थोड़े समय के लिये चुम्बकीय क्षेत्र में ऐसा तेल रखने से उसकी शक्ति पुनः बढायी जा सकती है। जोड़ों के दर्द में ऐसे तेल की मालिश अत्याधिक लाभप्रद होती है। दक्षिणी ध्रुव से प्रभावित दूध विकसित होते हुए बच्चों के लिये बहुत लाभप्रद होता है। दोनों ध्रुवों से प्रभावित दूध शक्तिवर्धक होता है। दोनों ध्रुवों से प्रभावित तेल बालों की सभी विसंगतियां दूर करता है। . सिर पर लगाने अथवा मानसिक रोगों के लिये चुम्बकीय ऊर्जा से ऊर्जित नारियल का तेल तथा जोड़ों के दर्द हेतु सूर्यमुखी, सरसों अथवा तिल्ली का चुम्बकीय तेल अधिकारी गुणकारी होता है। चुम्बकीय चिकित्सा के प्रभावशाली प्रयोग चुम्बकीय चिकित्सा सामान्यतया लगभग 10 से 15 मिनट,एक स्थान पर करनी चाहिये, परन्तु पुराने एवम् असाध्य रोगों में चिकित्सकों के परामर्श एवम् मार्ग--निर्देशन में समय परिस्थितियों एवं रोगी की अवस्था के अनुरूप निश्चित की जाती है। सामान्यता चुम्बक चिकित्सा करते समय रोग में वृद्धि नहीं होती, परन्तु प्रारम्भ में यदि पीड़ा कुछ बढ़ जावे तो, उसका कारण यह हो सकता है कि, चुम्बक पीड़ा को दूर करने के लिये, विकारों को शरीर से बाहर निकाल रहा है। पीड़ा पुनः थोडे समय पश्चात स्वतः कम हो जाती है और उसको घटाने के लिये किसी अलग उपचार की आवश्यकता नहीं होती। चुम्बकीय उपचार करते समय इस बात का ६ यान रहे कि, रोगी को सिर में भारीपन न लगे, चक्कर आदि न आवे। ऐसी स्थिति में तुरन्त चुम्बक हटाकर धरती पर नंगे पैर घूमना चाहिये अथवा एल्यूमिनियम या जस्ते पर खड़े रहने अथवा स्पर्श करने से शरीर में से चुम्बक चिकित्सा द्वारा किया 87

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