Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 79
________________ इसमें बांयें नथूने से पूरक और दाहिने नथूने से रेचक किया जाता है। गर्मी और पित्त सम्बन्धी रोगों तथा गर्मी के मौसम में यह प्राणायाम बहुत लाभकारी होता है। इससे शरीर की थकान दूर होती है। निद्रा अच्छी आती है। शरीर में शीतलता ' बढ़ती है, बुखार में शीघ्र आराम मिलता है। भ्रामरी प्राणायाम | ध्यानावस्था में बैठे दोनों नेत्र बन्द कर दोनों हाथों की तर्जनी से दोनों कानों के छिद्र बन्द कर दें। होठों का आपस में मिला दें। फिर मन ही मन ओम् का गुंजार करें। दोनों नथूनों से पूरक और रेचक करने वाले ऐसे प्राणायाम को भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं। ... इस प्राणायाम से मानसिक तनाव, चिंता, क्रोध, निराशा में कमी आती है। स्वर में मधुरता बढ़ती है तथा श्वसन और गले के रोग में लाभ होता है, स्मरण शक्ति ठीक होती है। प्राणायाम के लाभ 1. फेंफड़े मजबूत होते हैं। 2. रक्त के विकार दूर होते है। .. · 3. शरीर का संतुलित और सुडोल विकास होता है। 4. मन में उत्साह एवं मानसिक बल भी बढ़ता है। . ... 5. ध्यान में चित्त लगता है। 6. प्राणायाम से दीर्घ आयु प्राप्त होती है, स्मरण शक्ति बढ़ती है। 7. स्फूर्ति आती है. आलस्य नहीं आता। . . प्रत्याहार _शरीर की वह अवस्था जब पाँचों इन्दियाँ शान्त हों अपने बाह्य विषयों से मुक्त होकर अन्तर्मुखी हो जाती हैं, प्रत्याहार कहलाती है। इस अवस्था में मन की स्वछन्दता समाप्त हो जाती है। चित्त शान्त रहने लगता है! साधक को अपनी आत्मिक शक्तियों का आभास होने लगता है। शब्द आया. चला गया. उसके अर्थ पर ध्यान न देना। देखा, अनदेखा कर . देना उस पर चिन्तन नहीं करना। जिस प्रकार पानी बर्फ बनने के पश्चात ही छलनी में टिक सकता है, ठीक उसी प्रकार प्रत्याहार में पांचों इन्द्रियों के विषयों से ध्यान हटा लिया जाता है। प्रत्याहार को जैनागमों में प्रतिसंलीनता कहते है। . . धारणा शांत चित्त को शरीर के किसी स्थान पर एकाग्र करने को धारणा कहते हैं। धारणा ध्यान की प्रारम्भिक अवस्था होती है। 78

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