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अन्तःश्रावी ग्रन्थियों का श्राव पर्याप्त मात्रा में निकलता रहता है। उपवास के समय पाचन अंगों को भोजन पचाने का कार्य नहीं करना पड़ता। अतः वे शरीर में जमे विजातीय तत्त्वों को आसानी से निकालना प्रारम्भ कर देते हैं। अधिक पानी पीने से उन तत्वों के निष्कासन में मदद मिलती है। पेट में भारीपन, खट्टी डकारें आना, पेट में जलन तथा अपच आदि का कारण पाचन तंत्र में खराबी होता है। अतः ऐसे समय गरम पानी पीने से पाचन सुधरता है और उपरोक्त रोगों में राहत मिलती है। डायरिया, हैजा व उल्टी, दस्त के समय उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी पीना चाहिये, क्योंकि यह पानी कीटाणु रहित हो जाता है तथा दस्त के कारण शरीर में होने वाली पानी की कमी को रोकता है। गले और नाक में गर्म जल की वाष्प के बफारे लेने से जुकाम और गले संबंधी रोगों में आराम मिलता है। पीने वाली. अधिकांश दवाईयों में पानी का उपयोग किया जाता हैं । '. अधिकांश ठोस दवाईयां भी चाहे वे एलोपेथिक की टेबलेट अथवा आयुर्वेद
या अन्य चिकित्सा पद्धति से संबंधित मुंह में लेने वाली दवाईयों को पानी
के माध्यम से सरलता पूर्वक निगला. जा सकता हैं। 14. त्रिफला के पानी से आंखे धोने पर आंखों की रोशनी सुधरती है। रात भर
दाणा मेथी में भिगोया पानी पीने से पाचन संबंधी रोग ठीक होते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में शारीरिक शुद्धि के लिये पानी का अलग अलग ढंग से उपयोग किया जाता है। विशेष परिस्थितियों के अतिरिक्त स्नान ताजा पानी से ही करना चाहिये। . . ताजा पानी रक्त संचार को बढ़ाता है। जिससे शरीर.मे स्फुर्ति और शक्ति बढ़ती है। जबकि गर्म पानी से स्नान करने पर आलसय एवं शिथिलता बढ़ती है।
जल चिकित्सा के अनुभूत प्रयोग
पानी विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं को सरलता से अपने अन्दर समाहित कर .लेता है। अत: आजकल विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में पानी में आवश्यक ऊर्जा • संचित कर रोगी को देने से उपचार को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
1. सूर्य किरण और रंग चिकित्सा के अन्तर्गत शरीर में जिस रंग की आवश्यकता होती है, उस रंग की कांच की बोतल या बर्तन में पानी को निश्चित . . विधि तथा धूप में रखने से पानी में उस रंग के गुण आ जाते हैं। ऐसा पानी पीने से रोगों में राहत मिलती है तथा यदि स्वस्थ व्यक्ति पीये तो रोग होने की संभावना
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