Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 48
________________ प्रकृति का होता है और दिन में 10 से 2 बजे तक का समय पित्त प्रकृति का होता है। अतः हमेशा भोजन कफ प्रकृति में करने के बाद में पित्त प्रकृति का समय होने से पाचन में मदद मिलती है। 10 बजे के पश्चात शरीर की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ सूर्य की गर्मी भी बढ़ती है। प्रायः उस समय तक सभी निद्रा त्याग देने से शरीर में हलन चलन भी होने लगता है। कफ प्रकृति में भोजन करने से भोजन के तु रन्त पश्चात् इतनी ज्यादा प्यास भी नहीं लगती, जिससे खाने के तुरंत पश्चात् पानी पीने से जो पाचन बिगड़ता है उससे हम सहज बच जाते हैं, भोजन के पश्चात् निद्रा भी नहीं आवेगी। भोजन के पश्चात आलस्य, आराम खराब पाचन क्रिया के सूचक • होते हैं । प्रातः भोजन करने से कारण पाचन सर्वोत्तम होता है और हम सैकड़ों पाचन संबंधी रोगों से सहज बच जाते हैं। प्रातः 9 बजे से 11 बजे तक का समय तिल्ली और पेन्क्रियाज का सबसे अधिक सक्रियता का समय होता है, और रात्रि 9 बजे से 11 बजे प्रकृति से इन अंगों को सबसे कम प्राण ऊर्जा मिलती है। ठीक उसी प्रकार सांयकाल 7 बजे 9 बजे आमाशय में निम्नतम प्राण ऊर्जा का प्रवाह प्रकृति से होता है । अतः प्रातः 9 बजे से 11 बजे शरीर में पेन्क्रियाटिक रस और इन्सुलिन सबसे ज्यादा बनात है । इन्सुलिन का पाचन में विशेष महत्त्व होता है। अतः जो मधुमेह अथवा अन्य किसी -प्रकार के पाचन रोगों से ग्रस्त होते हैं, उनके भोजन करने के समय में परिवर्तन आवश्यक होता है। उन्हें जब आमाशय और पेन्क्रियाज सबसे अधिक सक्रिय हो अर्थात्ः प्रातः 9 बजे के लगभग अवश्य भोजन कर लेना चाहिये तथा सायंकाल 7 बजे से रात्रि 11 बजे के बीच भोजन नहीं करना चाहिये, क्यों कि उस समय प्रकृति से आमाशय और पेन्क्रियाज को निम्नतम प्राण ऊर्जा मिलने से पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है। कीटाणुओं का भोजन पर प्रभाव : सूर्यास्त के प्रश्चात् बहुत से सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते हैं। सूर्य का प्रकाश इन कीटाणुओं को पैदा होने से रोकता हैं। सूर्य के ताप में अनेक विषैले कीटाणु निष्क्रिय बन जाते हैं. जो सूर्यास्त के बाद पुनः सक्रिय होने लगते हैं। प्रायः हम अनुभव करते हैं । कि दिन में 1000 वाट के बल्ब के पास भी सूक्ष्म जीव नहीं आते, जबकि रात में थोड़ी सी रोशनी में भी बल्ब के आसपास मच्छर मंडराने लगते हैं। ये जीव आहार की गन्ध के कारण भोज्य पदार्थों तरफ आकर्षित होते हैं। वहीं दूसरी. तरफ भोजन में भी अनेक सूक्ष्म बेक्टीरियाँ उत्पन्न हो जाते हैं। इनका रंग भोजन के रंग जैसा ही होने से कृत्रिम प्रकाश में हम इन्हें नहीं देख पाते हैं । कृत्रिम प्रकाश में उजाला तो है, परन्तु वह सूर्य की बराबरी नहीं कर सकता। पूर्ण शाकाहारियों के लिये यह भोजन निश्चित रूप से त्याज्य होता है। रात्रि में तमस (अँधेरे) के कारण 47. #

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