Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 50
________________ . पाचन तंत्र को उन पदार्थों को पाचन के लिये सदैव क्षमात से अधिक कार्य करना । पड़ता है। उनको आराम नहीं मिलता। परिणामस्वरूप उनकी क्षमता क्षीण होने लगती है। पाचन तंत्र में विकार जमा होने लगता है, जिससे रक्त में भी विकार बढ़ जाते हैं। . उपवास में आहार का त्याग करने से आमाशय खाली हो जाता है तथा जठराग्नि के रूप में जो प्राण ऊर्जा आहार को पचाने में कार्य करती है उसका उपयोग पाचन तंत्र की सफाई में लग जाता है, जिससे रक्त भी शुद्ध होने लगता है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। जैसी कहावत है- “पेट साफ तो रोग मार्फ अतः नियमित कम से कम सप्ताह में एक दिन उपवास करने वालों को पाचन संबंधी रोग होने की अपेक्षाकृत कम संभावनाएँ रहती हैं। आहार शरीर को आवश्यक ऊर्जा और गर्मी प्रदान करता है जबकि उपवास शरीर को आरोग्य और शुद्धि प्रदान करता है। अधिकांशं पशु-पक्षी स्व स्फूर्णा से रोग होने पर सर्व प्रथम आहार त्याग करते हैं। रोगावस्था में आहार न करने से रोगी नहीं रोग भूखों मरता है। बीमारी में तो किया गया आहार विशेष रूप से रोगी का नहीं, अपितु रोग का पोषण करता है। अतः नियमित रूप से उपवास करने वाला स्वस्थ तथा पाचन संबंधी रोग के समय आहार का त्याग करने वाला जल्दी स्वस्थ होता है। __ भोजन से शरीर के विकास तथा संचालन हेतु आवश्यक ऊर्जा मिलती है। अतः यह आवश्यक है कि भोजन करते समय इन उद्देश्यों की पूर्ति का विशेष ख्याल रखा जाये। यदि इन बातों का ध्यान न रखा जाये तो भोजन स्वास्थ्यवर्धक होनां चाहिये, स्वास्थ्य भक्षक बन जाता है। . ___ उपवास का शाब्दिक अर्थ होता है आत्मा के समीप रहने की साधना। यदि आत्मा के समीप रहने की बात समझ में आ जाये तो. उपवास का लाभ कई गुणा. बढ़ जाता है। समीप रहने का मतलब आत्म स्वभाव में रमण करना। उससे शरीर का शोधन और रोगाणुओं के शान्त होने के साथ-साथ चेतना की शुद्धि और अनुभूति होने लगती है। जिससे भाव, विचार, चिन्तन, मनन, एवं भाषा का भी शोधन होता है। वास्तव में तो यही सच्चा उपवास कहलाता है। खाली भोजन न करना तो लंघन ही कहा जा सकता है, जिससे शरीर का शोधन तो हो सकता है, परन्तु आत्मा का नहीं। अतः उपवास में अधिकाधिक स्वाध्याय, ध्यान आत्म चिन्तन, मनन, निरीक्षण एवं स्वदोषों की समीक्षा करनी चाहिए, मन और पांचों इन्द्रियों के अनावश्यक दुरूपयोग को रोक उनका सदुपयोग किया जाय तो आत्म विकार, मानसिक विकार, वाणी के विकार भी शरीर के विकार के साथ दूर हो जाते हैं तथा व्यक्ति पूर्ण रूप . . से स्वस्थ होने लगता हैं। . १७

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