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बीच सीधा संबन्ध होता है। सुषुम्ना के बांयी तरफ ईडा और दाहिनी तरफ पिंगला । नाड़ी होती है। ये दोनों नाड़ियाँ मूलधारा चक्र से बायें-दाहिने से होकर अपना क्रम परिवर्तित करती हुई सीधे ऊपर की तरफ बढ़ती है। प्रत्येक चक्र पर एक दूसरे को काटती हुई आगे नाक के नथूनों तक पहुँचती हैं। उनके इस परस्पर सम्बन्ध के कारण ही व्यक्ति नासिका के श्वांस प्रवाहों को प्रभावित करके अत्यन्त सूक्ष्म स्तर पर ईडा और पिंगला नाड़ी में संतुलन स्थापित कर सकता है।
श्वसन में दोनों नथूनों की भूमिका
जन्म से मृत्यु तक हमारे श्वसन की क्रिया निरन्तर चलती रहती है। यह क्रिया दोनों नथूनों से एक ही समय समान रूप से प्रायः नहीं होती। श्वास कभी बांये नथुने से, तो कभी दाहिने नथुने से चलती है। कभी-कभी थोड़े समय के लिए दोनों नथुने से समान रूप से चलते है। ..
बांयें नथून में जब श्वास की प्रक्रिया होती है। तो उसे ईडा नाड़ी में चलना, और जब दाहिने नथूने में श्वास की प्रक्रिया मुख्य होती है। तो उसे पिंगला नाड़ी में चलना तथा जब श्वास दोनों नथूनें में समान रूप से चलता है तो उस अवस्था को सुषुम्न नाड़ी में चलना कहते हैं। एक नथूने को दबाकर दूसरे नथूने के द्वारा श्वास बाहर निकालने पर यह स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है कि एक नथूने से जितना सरलतापूर्वक श्वास चलता है उतना, उसी समय प्रायः दूसरे नथूने से नहीं चलता। जुकाम आदि न होने पर भी मानों दूसरा नथूना प्रायः बन्द है, ऐसा अनुभव होता है। जिस समय जिस नथूने से श्वासं सरलतापूर्वक चलती है, उस समय उसी नथूने से सम्बन्धित नाड़ी में श्वास का चलना कहा जाता है तथा उस समय अव्यक्त स्वर को उसी नाड़ी के नाम से पहिचाना जाता है। अतः ईडा नाड़ी के चलने पर ईडा स्वर, पिंगला नाड़ी के चलने पर पिंगला स्वर और सुषुम्ना से श्वसन होने पर सुषुम्न स्वर प्रभावी होता है।
. ईडा और पिंगला श्वास प्रवाहों का सम्बन्ध अनुकंपी (सिम्पेथेटिक) और . परानुकम्पी (पेरासिम्पेथेटिक) स्नायु संस्थान से होता है, जो शरीर के विभिन्न क्रिया कलापों का नियन्त्रण और संचालन करते हुए उन्हें परस्पर संतुलित बनाए रखती है। ईडा और पिंगला दोनों स्वरों का कार्य क्षेत्र कुछ समानताओं के बावजूद अलग-अलग होता है। ईडा का संबंध ज्ञानवाही धाराओं, मानसिक क्रिया कलापों से होता है। पिंगला का संबंध क्रियाओं से अधिक होता है। अर्थात् ईडा शक्ति का आन्तरिक रूप होती है जबकि पिंगला शक्ति का बाह्य रूप तथा सुषुम्ना केन्द्रीय शक्ति होती है, तथा उसका संबंध केन्द्रीय नाड़ी संस्थान (Central Nervous System) से होता है। जब पिंगला स्वर प्रभावी होता है, उस समय शरीर की बाह्य क्रियाएँ सुगमता से होने लगती है। शारीरिक ऊर्जा दिन के समान सजग, सक्रिय और जागृत होने .
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