Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 67
________________ उच्च सजगता में प्रवेश नहीं कर पाता। जब तक ये क्रियाशील रहती हैं, योगाभ्यास में अधिक प्रगति नहीं हो सकती। जिस क्षण ये दोनों शांत होकर सुषुम्ना के केन्द्र बिन्दु पर आ जाती है. तभी सुषुम्ना की शक्ति जागृत होती है और वहीं से अन्तर्मुखी ध्यान का प्रारम्भ होता है। . सुषुम्ना चन्द्र और सूर्य नाड़ी में जब श्वांस का प्रवाह शांत हो जाता है तो सुषुम्ना में प्रवाहित होने लगता है। इस अवस्था में व्यक्ति की. सुप्त शक्तियां सुव्यवस्थित रूप से जागृत होने लगती है। अतः वह समय अन्तर्मुखी साधना हेतु सर्वाधिक उपर्युक्त होता है। व्यक्ति में अहं समाप्त होने लगता है। अहं और आत्मज्ञानी उसी प्रकार एक साथ नहीं रहते. जैसे दिन के प्रकाश में अन्धेरे का अस्तित्व नहीं रहता। अपने अहंकार को न्यूनतम करने का सबसे उत्तम उपाय सूर्य नाड़ी.और चन्द्र नाड़ी के प्रवाह को संतुलित करना है। जिससे हमारे शरीर, मन और भावनायें कार्य के . नये एवं परिष्कृत स्तरों में व्यवस्थि ते होने लगती है। चन्द्र और सूर्य नाड़ी का अंसंतुलन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है। जीवन में सक्रियता व निष्क्रियता में, इच्छा व अनिच्छा में, सुसुप्ति और जागृति में, पसन्द और नापसन्द में, प्रयत्न और प्रयत्नहीनता में, पुरूषार्थ और परूषार्थ हीनता मे विजय और पराजय - में, चिन्तन और निश्चितता में तथा स्वछन्दता और अनुशासन में दृष्टिगोचर होता ध्यान कब करें? - जब चन्द्र नाड़ी से सूर्य नाड़ी में प्रवाह बदलता है तो इस परिवर्तन के समय एक साम्य अथवा संतुलन की अवस्था आती है। उस समय प्राण ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित होती है अर्थात् यों कहना चाहिये कि सुषुम्ना स्वर चलने लगता है। यह साम्य अवस्था मात्र थोड़ी देर के लिए ही होती है। यह समय ध्यान के लिए सर्वोत्तम होता है। ध्यान की सफलता के लिए प्राण ऊर्जा का सुषुम्ना में प्रवाह आवश्यक है। इस परिस्थिति में व्यक्ति न तो शारीरिक रूप से अत्याधिक क्रियाशील होता है और न ही. मानसिक रूप से विचारों से अति विक्षिप्त । प्राणायाम एवं अन्य विधियों द्वारा इस अवस्था को अपनी इच्छानुसार प्राप्त किया जा सकता है। यही कारण है कि योग साधना में प्राणायाम को इतना महत्व दिया जाता है। प्राणायाम ध्यान हेतु ठोस आधार बनाता है। कपाल भाति प्राणायाम करने से सुषुम्ना स्वर शीघ्र चलने लगता है। - स्वरों की पहचान नथूने के पास अपनी अंगुलियां रख श्वसन क्रिया का अनुभव करें। जिस - .:.:.66. .

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