Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 64
________________ - लगती है। अतः पिंगला नाड़ी को सूर्य नाड़ी एवं उसके स्वर को सूर्य स्वर भी । कहते हैं। परन्तु जब ईडा स्वर सक्रिय होता है तो, उस समय शारीरिक शक्तियाँ सुषुप्त अवस्था में विश्राम कर रही होती है। अतः आन्तरिक कार्यो हेतु अधिक ऊर्जा उपलब्ध होने से मानसिक सजगता बढ़ जाती है। चन्द्रमा से मन और मस्तिष्क अEि क प्रभावित होता है। क्योंकि चन्द्रमा को मन का मालिक भी कहते हैं। अतः ईडा नाड़ी को चन्द्र नाड़ी और उसके स्वर को चन्द्र स्वर भी कहते हैं। चन्द्र नाड़ी' शीतल प्रधान होती है, जबकि सूर्य नाड़ी उष्ण प्रधान । सुषुम्ना दोनों के बीच संतुलन . रखती है। सूर्य स्वर – मस्तिष्क के बायें भाग एव शरीर में मस्तिष्क के नीचे के. दाहिने भाग को नियन्त्रित करता है, जबकि चन्द्र स्वर मस्तिष्क के दाहिने भाग एवं मस्तिष्क के नीचे शरीर के बायें भाग से संबंधित अंगो, उपांगों में अधिक प्रभावकारी होता है। जो स्वर ज्यादा चलता है, शरीर में उससे संबंधित भाग को अधिक ऊर्जा मिलती है तथा बाकी बचे दूसरे भागों को अपेक्षित ऊर्जा नहीं मिलती। अतः जो अंग कमजोर होता है, उससे संबंधित स्वर को चलाने से रोग में शीघ्र लाभ होता है। . स्वस्थ मनुष्य का स्वर प्रकृति के निश्चित नियमों के अनुसार चला करता . है। उनका प्रकृति के विरूद्ध चलना शारीरिक और मानसिक रोगों के आगमन और भावी अमंगल का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में स्वरों को निश्चित और व्यवस्थित ढंग से चलाने के अभ्यास से अनिष्ट और रोगों से न केवल रोकथाम होती है, अपितु उनका उपचार भी किया जा सकता है। स्वर. नियन्त्रण स्वास्थ्य का मूलाधार . स्वर विज्ञान भारत के ऋषि मुनियों की अद्भुत खोज है। उन्होंने मानव की प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया का सूक्ष्मता से अध्ययन किया, देखा, परखा तथा श्वास-निःश्वास की गति, शक्ति, सामर्थ्य के सम्बन्ध में आश्चर्य चकित कर देने वाली जो जानकारी हमें दी उसके अनुसार मात्र स्वरों को आवश्यकतानुसार संचालित, नियन्त्रित करके जीवन की सभी समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है। जिसका विस्तृत विवेचन "शिव स्वरोदय शास्त्र में किया गया है जिसमें युग पुरुष- शिवजी ने स्वयं पार्वती को स्वर के प्रभावों से परिचित कराया। प्रकृति ने हमें अपने आपको स्वस्थ और सुखी रहने के लिए सभी साधन और सुविधाएँ उपलब्ध करा रखी हैं, परन्तु हम प्रायः प्रकृति की भाषा और संकेतों को समझने का प्रयास नहीं करते। हमारे नाक में दो नथूने क्यों? यदि इनका कार्य मात्र श्वसन ही होता तो एक छिद्र से भी कार्य चल सकता है। दोनों में हमेशा एक साथ बराबर श्वास निःश्वास की प्रक्रिया क्यों नहीं होती? कभी एक नथूने में श्वास का प्रवाह सक्रिय होता है तो, कभी दूसरे में क्यों? क्या हमारी गतिविधियों और श्वास 63 ..

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