Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 53
________________ अग्नि तत्त्व अग्नि एक ऊर्जा है, जिसका गुण है उष्णता। अग्नि जल से भी हल्की होती है और उसका स्वभाव ऊपर की तरफ उठना होता है। शरीर में नाभि से हृदय तक के भाग में इस तत्त्व की अधिकता होती है। नाभि का क्षेत्र जल तत्त्व और अग्नि तत्त्व के प्रभाव में रहता है। शरीर की उष्णता, जोश, उत्तेजना, स्फूर्ति आदि अग्नि. तत्त्व से विशेष सम्बन्धित होते हैं। अग्नि तत्त्व के असंतुलन से भूख और प्यास बराबर नहीं लगती। स्वभाव में चिड़चिड़ापन, शारीरिक ताकत में बदलाव, आँखों का तेज कम होने लगता है। पाचन बराबर नहीं होता। मस्तिष्क, सूर्य केन्द्र एवं प्रजनन संबंधी रोगों की संभावना . बढ़ जाती है। चर्म रोग, जोड़ों का दर्द होने लगता है। धूप सेवन से शरीर में अग्नि तत्त्व की पूर्ति होती है। अग्नि तत्त्व की अधिकता से बुखार आना, शरीर में जलन होना, पित्त बढ़ना, भूख और प्यास ज्यादा लगना, क्रोध अधिक आना, भोग की इच्छा होना आदि लक्षण प्रकट होने लगते हैं। अग्नि तत्त्व का संबंध हमारी चक्षु इन्द्रिय से अधिक होता है। अग्नि तत्त्व की अधिकता वालों की दृष्टि बड़ी पैनी होती है। व्यायाम, धूप स्नान एवं सूर्य.प्राणायाम से अग्नि तत्त्व बढ़ता है। जबकि आराम, निद्रा और चन्द्र प्राणायाम से अग्नि तत्त्व कम होता है। वायु तत्त्व वायु अग्नि से भी हल्की होती है। अत: अग्नि से ऊपर वाले शरीर के भागों में इसकी अधिकता होती है। शरीर में हृदय से कंठ तक वायु अपेक्षाकृत अधिक होती है। प्रायः वायु अस्थिर होती है। अतः शरीर में हलनचलन, संकोचन, फैलने वाली गतिविधियों में इसकी प्रभावी भूमिका होती है। वायु तत्त्व की अधिकता वाले व्यक्ति स्पर्शेन्द्रिय के प्रति विशेष संवदेनशील होते हैं। वायु तत्त्व के आवश्यक अनुपात में कमी होने से सम्बन्धित अंगों का हलन–चलन, श्वसन, रक्त प्रवाह, लासिका प्रवाह तथा शरीर में गतिशील अंगों में रोग होने की संभावना रहती है। शरीर में कम्पन अथवा खिंचाव भी हो सकता है। चिंता और भय लगने लगता है। फेंफड़ें, हृदय, गुर्दे आदि अंग विशेष प्रभावित होते हैं। वायु का अवरोध बढ़ने से गंठिया हो सकती है। सही ढंग से पूरा, गहरा, दीर्घ श्वांस अथवा प्राणायाम से शरीर में वायु तत्त्व . की पूर्ति होती है। आकाश तत्त्व · आकाश खाली होता है। सभी को स्थान देता है। अतः शरीर में जहाँ-जहाँ - रिक्तता होती है, वे भाग आकाश तत्व से सम्बन्धित होते हैं। आकाश तत्त्व की . 52

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