Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 58
________________ लग सकता है। फिर भी अंशकालीन मुद्रा प्रयोग स्नायुमण्डल के केन्द्रों और मुख्य ऊर्जा चक्रों में प्रभावशाली कंपन उत्पन्न करने में सहायक होती है। बायें हाथ से जो मुद्रा की जाती है उसका प्रभाव दाहिने अंगों पर विशेष पड़ता है और दांयें हाथ से जो मुद्राएँ, की जाती हैं, उसका प्रभाव बायें भाग के अंगों पर विशेष पड़ता है। शरीर के आवश्यकतानुसार एक के बाद एक मुद्रा की जा सकती है। मुद्राएँ यथासम्भव दोनों हाथों से करनी चाहिए। मुद्रा करते समय अंगुलियों का स्पर्श हल्का और सहज होना चाहिए तथा जो अंगुलियाँ मुद्रा बनाने में काम नहीं आती, उन्हें सीधा ही रखना चाहिए । अन्य उपचारों के साथ भी मुद्राओं का उपयोग बिना किसी दुष्प्रभाव से किया जा सकता है। चन्द प्रमुख मुद्राएँ हथेली की अंगुलियों और अंगूठे की विविध स्थितियों से अलग-अलग मुद्राएँ बनती हैं। प्रत्येक मुद्रा का प्रभाव अलग-अलग होता है और इन मुद्राओं से शरीर में उपस्थित पंच महाभूत तत्त्व प्रभावित होते हैं। अतः अलग-अलग मुद्राओं द्वारा उन्हें सन्तुलित रख स्वस्थ रहा जा सकता है। वैसे मुद्राएँ कभी भी किसी भी आसन में की जा सकती है, परन्तु स्वस्थ को वज्रासन अथवा पद्मासन में ही करना चाहिये । परन्तु रोगी सोते भी कर सकता है। मुद्रा एक हाथ में अथवा दोनों हाथो में की जा सकती हैं। मुद्राओं के नियमित अभ्यास से शरीर की ऊर्जा बढ़ती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। कुछ मुद्राएँ रोग की अवस्था में ही की जाती है, तो पंच तत्त्वों को सम करने वाली ऊर्जाएं कभी भी की जा सकती है । यहाँ पर चन्द विशेष मुद्राओं की सामान्य उपयोगी जानकारी दी जा रही है। जिज्ञासु व्यक्ति मुद्रा विशेषज्ञों से सम्पर्क कर मुद्रा विज्ञान को सरलता से अनुभूत कर अपने आपको स्वस्थ रख सकते हैं। कुछ मुद्राएँ तत्काल प्रभाव डालती हैं। जैसे अपान वायु और शून्य मुद्रा । कुछ मुद्राएं दीर्घकालिक होती हैं, जो लम्बे समय के अभ्यास के पश्चात अपना स्थायी प्रभाव प्रकट करती हैं। ज्ञान मुद्रा अंगुष्ठे व तर्जनी के ऊपरी पोर को स्पर्श करने से जहाँ हल्का सा नाड़ी स्पन्दन अनुभव हो, ज्ञान - मुद्रा बनती है। हाथ की अलग-अलग स्थिति रखने से ज्ञान मुद्राओं का अलग-अलग प्रभाव पड़ता है, जिने अलग-अलग प्रवृत्तियाँ करते समय आवश्यकतानुसार किया जा सकता है। लाभ ज्ञान मुद्रा से मस्तिष्क संबंधी रोग, आलस्य, घबराहट, चिड़चिड़ापन, क्रोध, निराशा, तनाव, अनिद्रा, बैचेनी, ज्ञान तन्तु के विकार दूर होते हैं। तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है। इस मुद्रा से आभा मण्डल आकर्षक बनता है और आत्म विकार 57 ·

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