Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 54
________________ अधिकता वालों की श्रोतेन्द्रिय अधिक संवेदनशील होता है। वे प्रत्येक बात को अधि क ध्यान से सुनते हैं। आकाश तत्त्व चारों तत्त्व को स्थान देता है । हमारे शरीर में पाँचों इन्द्रियों (आंख, कान, नाक, जीभ, स्पर्श) के माध्यम से जो ग्रहण किया जाता 'है, उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप जो कुछ होता है, उसका सम्बन्ध आकाश तत्त्व से होता है। जैसे काम, क्रोध, मोह, लोभ, लज्जा इत्यादि । आकाश को निहारने, खुले आकाश में उठने बैठने, चलने फिरने, सोने अथवा उपवास करने से इस तत्त्व की पूर्ति होती है। पंच तत्त्वों का शारीरिक अवयवों एवं प्रवृत्तियों से संबंध शरीर में प्रत्येक अवयव किसी न किसी पंच महात तत्व से संबंधित होता है । जिसकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी जा रही है। पृथ्वी तत्त्व जल तत्त्व अग्नि तत्त्व वायु तत्त्व - आकाश तत्त्व अस्थि, त्वचा, मांसपेशियाँ, नाखून, शरीर के बाल रक्त, वीर्य, मल, मूत्र, मज्जा, पसीना, कफ, लार निद्रा, भूख, प्यास, आलस्य, शरीर का तेज, क्रोध, पाचन रस, शरीर का तापक्रम - धारण करना, फेंकना, सिकोड़ना, फैलाना, चलना, बोलना, चिन्तन, मनन, स्पर्श ज्ञान पंच तत्त्वों का ज्ञानेन्द्रियों से 7 काम, क्रोध, मोह, लोभ, लज्जा, खालीपन, दुःख, चिंता, निर्विकल्पता दुष्प्रवृत्तियों, शारीरिक आवश्यकताओं और रोग संबंधी अवयवों के असंतुलन को संबंधित महाभूत तत्त्व को संतुलित कर आसानी से दूर किया जा सकता है। जिससे व्यक्ति रोग मुक्त, सजग बन सुखी जीवन जीते हुये अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। संबंध प्रत्येक तत्त्व का किसी न किसी ज्ञानेन्द्रिय से विशेष संबंध होता है। बिना खाली स्थान ध्वनि की तरंगों का प्रवाह नहीं हो सकता, हमारे कान, कार्य नहीं कर सकते। अतः कान यानि श्रवण शक्ति, आकाश तत्त्व से सीधी संबंधित होती है। बिना वायु स्पर्श ज्ञान नहीं हो सकता । स्पर्श ज्ञान हेतु त्वचा का महत्व होता है । अतः स्पर्शेन्द्रिय एवं त्वचा का संबंध वायु तत्त्व से होता है । दृष्टि और नेत्र संबंध अग्नि तत्त्व से होता है। यदि जीभ में शुष्कता आ जाये तो स्वाद की पहचान नहीं होती । अतः जीभ का संबंध जल तत्त्व से होता है। पृथ्वी अलग-अलग गंध वाले पदार्थो का निर्माण करती है । अतः घ्राणेन्द्रिय और नाक उससे संबंधित होते हैं। 53

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