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पगथली की आकृति प्रतिबिम्बित करती.
है-शरीर में पंच तत्त्वों की स्थिति ' हमारे शरीर का सारा भार पगथली पर पड़ता है। अत: शरीर की बनावट का एवं उसमें उपस्थित पंच तत्वों का भी उससे अवश्य संबंध होना चाहिये। मां के गर्भ में आने से लगाकर मृत्यु तक हमारे जैसे संस्कार, वृत्तियाँ, सोच, आचरण. जीवनशैली आदि होती है, उसी के अनुरूप हमारे व्यक्तित्व का विकास होता है एवं वे सभी हमारे पगथली पर प्रकट होने वाले लक्षणों के द्वारा प्रतिबिम्बित होते हैं। गर्भावस्था में हम अपनी माता की गतिविधियों से अधिक प्रभावित होते हैं। अज्ञानवश अथवा जिनं घटनाओं को हम भूल जाते हैं, परन्तु जो हमें अभी भी प्रत्यक्ष–परोक्ष रूप से हमारी प्राण ऊर्जा को असंतुलित करती है, उसके प्रवाह में अवरोध पैदा करती है, वे सारे लक्षण पगथली में अंकित होते हैं। किसी भी तत्व के असंतुलन से पगथली के संबन्धित भाग में परिवर्तन होने लगता है। पगथली में परिवर्तन, फैलाव अथवा संकोचन, सूजन अथवा सलवटें पगथली में उससे संबन्धितं तत्त्वों के असंतुलन का प्रतीक होती हैं। शरीर में घटित होने वाली प्रत्येक घटना का उस पर प्रभव पड़ता है। प्रमुख घटनाओं के लक्षण स्थायी होते हैं। पंगथली की आकृति इसके दर्पण के । समान होती है।
_व्यक्ति कैसे चलता है। उस समय उसकी शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्थिति पगथली से मालूम की जा सकती हैं। आकाश तत्त्व की पगथली में कोई विशेष स्थिति नहीं होती है। जबकि बाकी चारों तत्वों की स्थिति चित्रानुसार होती है। अमेरिकन डॉ. ए.वी.आई. ग्रिनवर्ग ने एक्यूप्रेशर की फुट रिफ्लेक्सोलोजी के अनुसार पगथली में शरीर के अंगों, उपांगों एवं अवयवों आदि का बाकी चार तत्वों के साथ संबंधों का अध्ययन किया तथा अलग-अलग प्रकार के लक्षणों से पड़ने वाले प्रभावों की शोध की। जिसके आधार पर पगथली को देखने मात्र से व्यक्ति के वर्तमनान एवं भूत की शारीरिक स्थिति का स्वतंत्र रूप से निदान किया जा सकता . है। प्रभावित अंगों में उपचार कर रोग से मुक्ति मिल सकती है। जिज्ञासु व्यक्ति
अनुभवी प्रशिक्षक से प्रशिक्षण प्राप्त कर चन्द दिनों में निदान परीक्षण एवं उपचार - करने की विधि में दक्षता प्राप्त कर सकता है।
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