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करने वाला भोजन अच्छा लगता है। सात्त्विक भोजन ही संतुलित होने से सर्वश्रेष्ठ होता है। क्योंकि ऐसा भोजन करने से न तो उत्तेजना आती है, न मादकता, तथा आलस्य और न कमजोरी । परन्तु स्फूर्ति और ताकत प्राप्त होती है ।
भोजन में मुख्य रूप से छः स्वाद होते हैं । 1 मीठा 2. खट्टा 3. नमकीन 4. तीखा 5. कड़वा 6. कषैला । अधिकांश व्यक्तियों के भोजन में प्राय: अंतिम दो स्वादों का अभाव होता है। यदि भोजन में इनका समुचित समावेश किया जाये तो मधुर स्वाद का दुष्प्रभाव दूर हो जाता है और पाचन सुधरता है ।
प्राकृतिक चिकित्सकों और आहार विशेषज्ञों के दृष्टिकोण से भोजन हीं औषधि है । अतः उनकी मान्यता के अनुसार रोगी का उपचार चिकित्सालय की अपेक्षा भोजनालय में होना चाहिये। बड़े बड़े अनुभवी हृदय रोगों के चिकित्सक दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण मात्र संतुलित भोजन से हजारों हृदय रोगियों का सफल उपचार करने में सफल हुए हैं। स्वस्थ होने पर भोजन पोषण के लिये और रोग होने पर रोग को दूर करने के लिए भोजन औषधि का कार्य करता है।
भोजन उतना ही करें, जिसका पूर्ण पाचन हो सके। हम प्रायः जितना खाते हैं, उसके दो तिहाही भाग से हम जीवित रहते हैं । तथा एक तिहाही भाग से चिकित्सक | पाचन संस्थान शरीर का वह तंत्र है जो आहार को ग्रहण करने, उसका पाचन करने, पाच्य आहार से शरीर के लिए आवश्यक समस्त पोषक तत्त्वों का अवशोषण करने तथा पाचन एवं अवशोषण के उपरान्त जो अनुपयोगी पदार्थ हैं, उन व्यर्थ पदार्थों का मल के रूप में शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है । उपर्युक्त कार्यों में यदि कहीं भी अपूर्णता रहती है अथवा अवरोध होता है । तो जो भोजन शक्ति वर्धक होना चाहिये, वह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो जाता है । पाचन क्रिया का प्रारम्भ मुँह से होता है। भोजन को खूब चबा-चबा कर धीरे-धीरे खाना चाहिए, ताकि उसमें अधिक से अधिक लार और थूक का मिश्रण हो सके। ऐसा करने से भोजन का अधिकांश पाचन मुंह में ही हो जाता है। अधिक स्वाद मिलता है, और भोजन से तृप्ति होती है । परन्तु आज तेजी का युग है, प्रत्येक व्यक्ति कम समय और कम श्रम में जीवन की समग्र समस्या का सरलतम समाधान चाहता है । परिणाम स्वरूप भोजन के लिये अधिकांश व्यक्तियों को समय ही नहीं होता है । वे मात्र मजबूरी से खाना खाते हैं। शान्त, प्रसन्नचित, एकाग्रता से मौन पूर्वक खाना नहीं खा सकते। भोजन करते समय सारा ध्यान भोजन में होना चाहिए. न कि कुछ देखने, सुनने, पढ़ने अथवा बातचीत करने में । बोलते रहने से मुँह में लार कम बनती है । फलतः मुँह सूखने लग सकता है। जिससे भोजन के बीच में पानी पीना पड़ता है। भोजन के बीच में पानी पीने से पेट की जठराग्नि शान्त हो जाती हैं और आमाशय में भोजन को पेन्क्रियाज, लीवर, गाल ब्लेडर आदि से मिलने वाले पाचक रस पतले हो जाते हैं। जिससे आमाशय में भोजन का पूर्ण क्षमता से पाचन नहीं
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