Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 42
________________ सब्जियाँ दूषित हो जाती हैं। वे शरीर का सम्पूर्ण पोषण नहीं कर सकती बल्कि उनके सेवन से शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न होने की संभावना रहती है। हमारे शरीर में अम्ल क्षार का अनुपात 20:80 हैं। अतः भोजन में भी यथा संभव 80 प्रतिशत क्षार तत्त्व और 20 प्रतिशत अम्ल तत्त्व होने चाहिए, जिससे शारीरिक अवयवों का सही निर्माण हो सके। अत: जिन खाद्य पदार्थों के उत्पादन में रासायनिक खाद, विषैली. कीटनाशक दवाओं का उपयोग न किया गया हो, जिसको प्राप्त करने के लिए किसी भी चेतनाशील प्राणी की हत्या न की गई हो अथवा उन पर क्रूरता, अत्याचार और कष्ट नहीं दिये गये हों, जो भोजन अपनी प्राकृतिक अवस्था और स्वरूप में हो या उसकी अवस्था एवं स्वरूप में कम से कम परिवर्तन हुआ हो, ऐसे अपनी आवश्यकता के अनुरूप पौष्टिक पदार्थों से ओतप्रोत सात्त्विक भोजन को ही सर्व श्रेष्ठ भोजन कहा जा सकता है। . हम स्वयं निर्णय करें कि हम कैसा भोजन कर रहे हैं। यदि हम अपने आपको बुद्धिमान समझते हैं, तो भोजन को ग्रहण करने से पूर्व एक क्षण चिन्तन करें क्या भोजन हमारे अनुकूल है? किसी प्राणी के अपवित्र रक्त, मांस और चर्बी की गंदगी तो उसमें नहीं है? किसी बेगुनाह जीव की हत्या से निर्मित उस जीव की बददुआएँ की तरंगें भोजन के माध्यम से पेट मे जाकर हमारे में हिंसा, क्रूरता, .. निर्दयता और प्रति हिंसा की ज्वाला तो पैदा नहीं करेंगी? अतः भ्रामक विज्ञापनों से" प्रभावित हो अखाद्य वस्तु पेट में डालकर अपने पेट को कूड़ा दान न बनायें। . . जो भोजन उपर्युक्त तथ्यों के जितना समीप होता है, उसी अनुपात में उसका लाभ अधिक मिल सकता है। क्योंकि भोजन में न केवल पदार्थ का ही महत्त्व होता है, अपितु उसके बनाने के ढंग और बनाने वालों के भावों, शारीरिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता हैं। भोजन बनाने हेतु सावधानियाँ दूसरी बात उबालने, मिक्सी में रस निकालने, फ्रिज अथवा कोल्ड स्टोरेज में रखने से खाद्य पदार्थो का प्राकृतिक स्वरूप बदल जाता है और पौष्टिक तत्त्वों में कमी आ जाती है। भोजन बनाते समय भी आजकल स्टील, एलुमिनियम और प्लास्टिक के बर्तनों का प्रयोग अधिक होता है। जिससे भोजन में हानिकारक, रासायनिक पदार्थों के मिश्रित होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा भोजन शरीर में . रोग प्रतिरोधक क्षमता घटाता है। एलुमीनियम थोड़ी सी गर्मी पाकर गलने लगता है। और खाद्य पदार्थों के साथ पेट में जब पहुँच जाता है तो, अपाच्य विकार पैदा करता है, जिससे गुर्दे में पथरी और आंतों में खराबी होने की संभावनाएँ बढ़ सकती है। अतः यथा संभव एलुमीनियम के बर्तनों का उपभोग खाना बनाने में नहीं करना . 41

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