Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 20
________________ पेट के जितना नजदीक बिना किसी दर्द ले जा सकते हैं, ले जावें । अब यदि छोटे पैर को बड़ा करना हो तो उस पैर की पिण्डली को पकड़ते हुये पैरे को अन्दर की तरफ रोगी का चेहरा देखते हुए जितना सहन हो सके ले. जायें। ऐसा करने से छोटा ... पैर बड़ा हो जाता है। यदि व्यक्ति के किसी पैर में चोट पीड़ा अथवा अन्य किसी कारण तकलीफ हो तो उस पैर को नहीं मोड़ना चाहिये। यदि किसी कारणवश छोटे पैर को घुमाना संभव न हो तो बड़े पैर को छोटा करने के लिये पिण्डलियों से पैर को बाहिर की तरफ इतना मोड़े जितना रोगी सहन कर सके। इस प्रक्रिया से छोटा पैर बड़ा तथा बड़ा पैर छोटा किया जा सकता हैं। ... शरीर में मेरू दण्ड का महत्त्व . मेरू दण्ड का संतुलन करने के पहले यह जानना और समझना आवश्यक है कि मेरू दण्ड क्या है? वह शरीर में कहाँ स्थित है तथा उसके क्या क्या कार्य हैं। जो उसके असंतुलन से प्रभावित हो सकते हैं। रीढ़ की हड्डी (मेरू दण्ड) शरीर के पिछले मध्य भाग में होती है। जो खोपड़ी से शुरू होकर नितम्ब तक एक श्रृंखला के रूप में कार्य करती है। इसमें कुल 33 हड्डियों के जोड़ होते हैं। जिन्हे मणके, कशेरूकायें, वरटेबरा आदि नामों से पुकारा जाता है। ये मणके साईकल की चेन के समान एक दूसरे के साथ समान दूरी पर जुड़े हुये रहते हैं। जब किन्हीं दो मणकों के बीच की दूरी कम या अधिक हो जाती है। अथवा एक दूसरे से चिपक जाते हैं तो मेरूं दण्ड का लोच समाप्त हो जाता है। उनमें तनाव उत्पन्न हो जाता है और असंतुलन होने से विकृति आ जाती है। परिणामस्वरूप सरवायकल स्पोंडोलाईसस, स्लिप डिस्क, जैसी अनेक मेरू दण्ड से संबंधित बीमारियाँ हो सकती है। नाड़ी .. संस्थान संबंधी अधिकांश रोगों का भी मेरूदण्ड में असंतुलन मुख्य कारण होता हैं। ' तीस मणकों में 24 मणके अलग अलग तथा गति वाले होते हैं- जिसमें मेरू दण्ड के सबसे ऊपर गर्दन के भाग में सरवायकल के सात, छाती वाले भाग में थोरोसिक के 12 तथा उसके नीचे पेट वाले भाग में लम्बर के पांच मणके होते हैं। बाकी 9 मणकों में कुल्हे को जोडने वाले पांच मणके मिलकर सैक्रम तथा अन्त में बहुत पतली पूंछ के समान चार मणके मिलकर कोसिक्स का भाग बनते हैं। ऊपर के गतिशील 24 मणकों के बीच में कुछ खाली स्थान होता है। जिसमें गद्दी सी होती है, जो शोकर अथवा स्प्रिंग का कार्य करती है। ताकि झटका लगने पर, मुड़ने पर, टेढ़ी अथवा खिंचाव होने पर, ये गद्दिया मेरू दण्ड को टूटने, फिसलने अथवा विकृत होने से बचाती है। रीढ़ हमारे शरीर की मुख्य धुरी होती है। जो शरीर को लचकता प्रदान करती है। इसी कारण हम दांये -बांये. आगे-पीछे मुड़ सकते हैं। नीचे झुक सकते हैं। ऊपर देख सकते हैं। पीठ की सारी मांसपेशियां भी मेरू दण्ड के सहारे टिकी रहती हैं। 19

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