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बहुत अधिक प्रभावशाली होता है।
प्रातःकाल और सोने से पूर्व नेति क्रिया करने से न केवल नथूनों की सफाई होती है, परन्तु उसके साथ-साथ निद्रा अच्छी आती है। आंखों की ज्योति . . सुधरती है। सिर की गर्मी शान्त होती है। स्मरण शक्ति बढ़ने लगती है। बाल झड़ना बन्द हो जाता हैं और लम्बे समय तक बाल काले बने रहते हैं, ऐसे प्रत्यक्ष परोक्ष अनेक लाभ होते हैं। .. ..
जल नेति करते समय हमेशा मुँह खोलकर ही श्वास-प्रश्वास की क्रिया करनी चाहिए अन्यथा नासिका में जल ऊपर चढ़ सकता है, जिससे चक्कर आने की संभावना रहती है। जल नेति के पश्चात् कपाल भाति व भस्त्रिका प्राणायाम अवश्य करना चाहिये। जिससे नाक पूर्ण रूप से साफ हो जाये और उसमें एक बूंद भी पानी न रहे।
सही निःश्वास का महत्त्व पूर्ण श्वास लेना जितना आवश्यक है, उतना ही पूरा श्वास निकालना भी आवश्यक है। श्वास के माध्यम से जो ऑक्सीजन के रूप में प्राण वायु हम ग्रहण करते हैं, वह रक्त शुद्ध करने में कार्बनडाई आक्साईड में बदल जाती है। यदि इस दूषित वायु का शरीर के समय पर पूर्ण निष्कासन न हुआ तो शरीर में अनुपयोगी विजातीय तत्त्वों में वृद्धि होने लगती है। जिससे प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध आने के कारण रोग होने की संभावना रहती है। जन साधारण .जो प्राणायाम नहीं करते, उन्हें भी प्रातःकाल स्वच्छ एवं शुद्धि वातावरण में कम से कम कुछ समय तो गहरी धीमी पूर्ण सजगता पूर्वक अवश्य श्वसन क्रिया करनी चाहिये। साथ ही प्रात: भूखे पेट ही बिना कुछ खाये कुछ बार गहरी श्वास प्रक्रिया करने के बाद कम से कम एक बार मुंह बंद करके पूरे वेग से नाक से जितनी ज्यादा वायु बाहर फेंक सकें फेंकने का अपनी सामर्थ्य और विवेक अनुसार प्रयास करना चाहिये। ऐसा करने से सारे शरीर में वायु का प्रवाह एक दम तेज हो जाता है और जो विजातीय तत्त्व साध गरण रेचक प्रक्रिया से निष्कासित नहीं होते हैं, वें भी बाहर निकल जाते हैं। साथ ही स्वतः पूर्ण वेग से श्वास की पूरक क्रिया होती है, जिससे सारे शरीर में प्राण ऊर्जा का प्रवाह पहुँचने लगता है। इस प्रक्रिया द्वारा शरीर में लम्बे समय से जमा अवरोध । तथा विजातीय तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं। जो यह प्रक्रिया न कर सकें उन्हें कपाल भाति क्रिया नियमित करनी चाहिये। . . . शरीर में जल के कार्य
हवा के पश्चात शरीर में दूसरी सबसे बड़ी आवश्यकता पानी की होती है। पानी के बिना जीवन लम्बे समय तक नहीं चल सकता। शरीर में लगभग दो तिहाई भाग पानी का होता है। शरीर के अलग-अलग भागों में पानी की आवश्यकता
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