Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 30
________________ ... योग शास्त्र में प्राणायाम के विविध प्रकारों का वर्णन मिलता है। अतः जिज्ञासु स्वास्थ्य प्रेमियों को अनुभवी योग प्रशिक्षकों के सान्निध्य में प्राणायाम की विविध पद्धतियों का अवश्य अध्ययन एवं अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम के समान स्वास्थ्य सुरक्षा की सहज, सरल, स्वावलम्बी, अन्य विधि प्रायः संभव नहीं होती। __ श्वास के प्रति सजगता का विकास मैं श्वास ले रहा हूँ और छोड़ रहा हूँ, इसका स्पष्ट बोध होना ही श्वास के प्रति सजगता है। श्वास के प्रति सजग होने से हम अपनी चेतना के प्रति सजग — होते हैं अर्थात् हम स्वयं के प्रति सजग होते हैं। सजगता जीवन की सफलता की प्राथमिक आवश्यकता है। व्यक्ति अपना भला बुरा समझने लगता है। पुरुषार्थ सम्यक् और प्राथमिकताओं के अनुरूप होने से व्यक्ति की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। प्रमाद कम होने लगता है। शरीर और मन का भारीपन कम होने लगता हैं। . श्वास लेते समय पेट पूरा फूलना चाहिए और श्वास बाहर निकालते समय . पेट जितना अन्दर जा सके जाना चाहिए, तभी सम्पूर्ण स्नायु संस्थान में प्राण वायु ... का प्रवाह संभव होता है अन्यथा नहीं। यदि श्वास उल्टी चलती है तो, शवासन में लेट कर मानसिक चिन्तन के द्वारा श्वास को लेते समय पेट को बाहर करें और .. निकालते समय सिकोड़ें। जब भी ध्यान में आये सही श्वास प्रश्वास की आदत डालनी चाहिए। स्वच्छ एवं खुली हवा में अधिकाधिक रहना, घूमना और सोना चाहिए। प्रदूषित वातावरण से अपने आपको संभव बचाना चाहिए। यही श्वास के प्रति हमारी सजगता होती है। :... श्वास नाक से ही क्यों लें? नासिका शरीर का वह अंग है जिसका कार्य श्वास द्वारा ली जाने वाली . वायु का फेंफड़े में पहुंचने के पूर्व पर्याप्त शुद्धि परिमार्जन व शरीर के तापक्रम के अनुरूप बनाना है। ताकि बाह्य वातावरण की गर्म अथवा सर्द हवा फेंफड़ों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सके। सामान्यतः जो वायु श्वास के रूप में लेते हैं, वह ठण्डी या गर्म, गंदी और रोगाणुओं से परिपूर्ण हो सकती हैं? उसमें सूक्ष्म धूलकण हो सकते हैं। नथूनों में उपस्थित रोम (बाल) जो एक प्रकार की छलनी का कार्य करती हैं। श्वास नली उन धूल कणों और रोगाणुओं को अन्दर जाने से रोक देती। हैं। ये रोम अन्दर की तरफ प्रवाहित वायु की दिशा के विपरीत कंपन करते हैं। अतः वायु के साथ होने वाले दूषित पदार्थ अन्दर नहीं जा पाते। . दूसरी बात नाक में स्थित श्लेष्मा झिल्लियाँ (म्यूकस मेम्ब्रेन) होती है। जिससे एक प्रकार का वायु में उपस्थित तरल पदार्थ-निकलता है, जो वायु में उपस्थित उन असंख्य रोगाणुओं को भी हटा देता है, जो फेंफड़ों के लिए अति घातक सिद्ध हो सकते हैं। साथ ही धूल कणों से भी बचाव करती है, जिनका किसी . . 29 .

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