Book Title: Swadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 34
________________ से आंव की वृद्धि होती है। अपच और कब्ज होता है। जैन साधु और बहुत से श्रावक रात्रि में पानी नहीं पीते। परिणाम स्वरूप सायंकालीन भोजन के तुरन्त पश्चात् उनको पर्याप्त पानी पीना पड़ता है, जिससे उनके पाचन संबंधी रोग होने की संभावना अधिक रहती है। अतः स्वास्थ्य प्रेमी साधकों को सांयकालीन भोजन यथा संभव त्यागना ही उपयुक्त होता है। परन्तु यदि ऐसा संभव न हो और भोजन के पश्चात् पानी पीना आवश्यक हो तो, जितना गर्म पानी पी सकते हैं, उतना गर्म पानी धीरे-धीरे चूंट चूंट पीना चाहिए, जिससे आमाशय की गर्मी कम न हो। साथ ही : धीरे धीरे पानी पीने से पानी के साथ थूक मिल जाने से वह पानी पाचक बन जाता हैं। उषापान प्रातःकाल निद्रा से उठने के पश्चात् मुंह धोये अथवा दांतुन या कुल्ला करें तथा रात भर ताम्र पात्र में रखा हुआ अपनी क्षमतानुसार एक लीटर से ढेड़ लीटर के लगभग जल पीना चाहिये। इस क्रिया को उषा पान कहते हैं। रात भर में निःश्वास के साथ जीभ पर विजातीय तत्व जमा हो जाते हैं। इसी कारण दिन भर कार्य करने के बावजूद मुंह में जितनी बदबू नहीं आती, उतनी निद्रा में बिना कुछ खाये ही आती है। ये विजातीय तत्त्व जब पानी के साथ खाली पेट में पूनः जाते हैं तब औषधि का कार्य करते हैं। अतः उषापान का पूर्ण लाभ बिना दांतुन पानी पीने से ही मिलता है। उसके पश्चात् टहलने अथवा पेट का हलन-चलन वाला व्यायाम (संकुचन और फैलाना) करने से पेट में आंतें एक दम साफ हो जाती हैं। जिससे पाचन संबंधी सभी प्रकार के रोगों में शीघ्र राहत मिलती है। पानी पीने का श्रेष्ठतम समय प्रातःकाल भूखे पेट होता है। रात्रि के विश्राम काल में चयापचय क्रिया द्वारा जो विजातीय अनावश्यक तत्त्व शरीर में रात भर में जमा हो जाते हैं, उनका निष्कासन गुर्दे, आंतें, त्वचा अथवा फेफड़ों द्वारा होता है। अतः उषापान से ये अंग, सक्रिय होकर समस्त विजातीय पदार्थों को बाहर निकालने में सक्रिय हो जाता हैं। जब तक रात भर में एकत्रित विष भली भांति निष्कासित नहीं होता और ऊपर से आहार किया जाये तो विभिन्न प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है, उषापान से बवासीर, सूजन, संग्रहणी, ज्वर, उदर रोग, कब्ज, आंत्ररोग, मोटापा, गुर्दे संबंधी रोग; यकृत रोग, नासिका आदि से रक्त स्राव, कमर दर्द, आंख, कान आदि विभिन्न अंगों के रोगों से मुक्ति मिलती है। नेत्र ज्योति में वृद्धि, बुद्धि निर्मल तथा सिर के बाल जल्दी सफेद नहीं होते अर्थात् अनेक रोगों में लाभ होता है। . उषापान स्वस्थ एवं रोगी दोनों के लिए समान उपयोगी होता है। प्रारम्भ में यदि एक साथ इतना पानी न पी सकें. तो प्रारम्भ में दो गिलास जल से शुरू ‘करें। धीरे धीरे सवा से डेढ़ लीटर तक मात्रा बढ़ावें। इतना ज्यादा पानी एक साथ पीने पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। सिर्फ प्रथम कुछ दिनों में अधिक पेशाब 33

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