Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 206
________________ सिंगिणी सिसिर सिंह इल्लो सिहरिणी सिहरिल्ला सिहिणा सिही सरावहासिआ सीहणही सुरजे सुहसाणी सूरद्धओ सोलहावत्तओ हरिचंद हरी हिज्जो अअं अअ खो अइगय भइरो अइणिअ ईसओ निक्कणो 172 शुङिगणी शिशिरम् शिखण्ड + 'इल्ल' शिखरिणी Jain Education International शिखर + 'इल्ला' शिखिनौ शिखी शिरउपहा सिका सिंहनखी सुरज्येष्ठः सुखस्वाना सूर्यध्वजः षोडशावर्तकः हरिचन्दनम् हरित् यः Allied to the above, and more or less distinguishable from it is another group of words, whose Sanskritic origin is not so obvious, but which can be made out with some effort. Note for example the following words : उलुहलिओ उदूखलिक: ततम् अकांक्ष: अपिगतम् (Vedic ) अतिराजा अतिनीतम् (Vedic ) गौः दधि बालः, मयूर: मार्जिता मार्जिता स्तनौ For Private & Personal Use Only कुक्कुट : लज्जा करमन्दिका वरुणः मयूरी दिन: शङ्खः कुङ्कुमम् शुकः कल्यम् तृप्तिरहित: विस्तारितम् आयुक्तः आनीतम् ऋष्यकः मृगविशेषः नि + वुक्कू + अन वायस: So also बुक्कणो काकः, उबुककं = प्रलपितम्, बुक्कासारो = भीरुः वकिल्ले] = अलीकशूर : contain बुक्क् 'to boast', ‘to babble’. निःस्नेहः प्रविष्टम www.jainelibrary.org

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