Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 298
________________ 264 ५२ चुल्हीसंधुक्षण २०८-२ ६८ किं अधकल्पे नाऽऽगम्यते ५५, चुलो संध्रुकवा ते ४-५ आजकाल केम आववानु ५३ नालिकेरस्फोटन २७३-५ यतु नथी ? नाळियेर फेोडवू ते ६९ गोष्ठी कुर्वाणा उपविष्टाः२-११ ५४ स्व मस्तकं खज्जयू ९८.१७ वात करतां बेठा हता पातानुं माथु खजवाळवु ७. ज्वलितं सन्ति ज्वलिता वा २०९, ५५ उपरि या १-१४ उपर जवु ३-४ सळग्या के सळगशे ५६ पश्चाद् या ७-४ पाछा जवु ७१ त्वादशा मत्फुत्कृतेन उड्डीयन्ते ५७ सार्धम् आया ३ २, ३-३ २०४ २८ तारा जेवा मारी फूके साथे आवq. ऊडी जाय ५८ संमुखं विलोकय ६-१८ ७२ लक्ष लक्ष नमस्कारा मानिताः सामु जोg ४५-६लाख लाख नमस्कार मान्या ५९ वत्म बिलोकम् ३३७, २५-२६ ७३ पृच्छनेन सुतम् १६९-१९ वाट जोवी पूछवाथी सयु ६० मौनी भू २ २१ मूगा थई नर्बु ७४ त्वया कि स्यात् २०५-२ ६१ मागे चलन् १-२० रस्ते चालतां __ ताराथी शुं थाय तेम छे ? ६२ वर्य व तम् १७०-२३सारुं कर्यु ७५ अद्य किमपि रडु न शकितं ६३ मस्तकं भद्रीकृ.२४ --५ . मया १७० - २३ आज माराथी माथु भद्रावबु कांईपण रांधी नथी शकायु ६४ वाहरा धाविता ८६-६ ७६ न शीतं लग भावी ३७-२२ क्यांक ठडी न लागी जाय वाहर धाई ६५ सकाले विकाले ३२०-२७ ७७ ढोलस्य पोलत्वम् ७८-५ वहेलु -मोडु ___ढोलनी पोलत्वम्७४-५ ढोलनी पोल ६६ दीपो वर्थ्यताम् १७२-२७ ७८ जीवन्नरो भद्राणि लभते १७३ दीवो वषेरो २ जीवतो नर भद्र पामे ६७ घटिकायोजना'ट्री २६७-५ ७९ कीटकोपरि कटकार भ: २५:- घडियाजाजन सांढणी ९, २९८-१२ कीडी उपर कटक आ यादी सारा प्रणाणमां लंबावी शकाय तेम छे. वाक्योनी समग्र वाक्यरचना, तेमना ढाळो अने शैली मोटे भागे गुजरातीना होवानु लाग्या करे छे. संस्कृतना वेशमां गुजराती भाषा होवानुं अनेक स्थळे प्रतीत थाय छे. शताब्दीओ सुधी (अने वनारू हिंदीनी जेम) विविधभाषी प्रदेशोमा राष्ट्रभाषा तरीके संस्कृत अखिल भारतीय व्यवहारमा रहेतां, ते केटली बधी वाळी वळे तेवी बनी शकती ते वस्तु प्रबन्धोनी भाषा स्पष्टपणे बतावी आपे छे. आम मोन्य-भाषाना उद्भव अने षडतरनी व्यापक दृष्टिए पण जैन प्रबन्धानी भाषा घणी रसप्रद नणाशे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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