Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text ________________
259
स्थगू ४४-५ ढांक स्थगी २६६, २५-२७,२६७, १.७
पानन वाटवा उचकनार सेवक तांबूलवाहक (जू गुज थइयाइत) ('स्थगी' वाटवा'ना अर्थमा होय छे-जेम के तांबूलस्थगीधर'. अहीं
एवा सेवक माटे वपराया लागे छे) स्पधक (न )२३,४-६-७,८५-१२
११४.२६, १६८-१७
२४०, २४-२५ फदियु के बीजो कोई सिको (१) स्फेट १३-८, ८३-४ फेडवु स्वक ३२२-७ सगु हक्क् ५-१४, ६-१४ हाक मारीने,
धमकावीने काढवू
हज २४३ १७, २८, २९ हन, ___ मकानी जात्रा (अरबी)
इडि (हिडि) २०१-२५, २०२, . १-३ हेड, पगमा जडाती लाक
डानी एक जातनी बेडी (शृखला) हद् ३२३-८ हगवु हरीमजद्वीप ५-२२ होरमजनो टापु
(फारसी) हल्लू मल्लू ३००-१८ हालवू मालबुं हल्ला (स्त्री०) ३००-१७ हळ। हाडि हाडि २०२-१४ हड हड हिण्डू १३८-८ हीडवु, भमवु हिण्डोला-खरवा २१५-९ हीडोळाखाट हृदित १६८-८ हग्यो, मलत्याग
कों (स. हदित)
(२) संदिग्ध अर्थवाळा शब्दो कपरिक २५२-१८ बेवडु-त्रेवडु छाशना घडो के मोरियो (राज.
लपेटेलु पूटु, जेमां छूटक ___ 'चरुडा') कागळ वगेरे रखाय. राजस्थानी छलि ५०-१३='छल्लि', छाल (?) 'कँवली', अतिचार वगेरेमा ते
('छलिछन्नद्रुम इव') ज्ञानोपकरण तरीके गणावेल छे
छीत्कारय् २७४-१० अडकावयु, (राजशेखरना 'प्रबन्धकोश'मां स्पर्श कराववो (सर. प्रा. १०, २७-२८मां कपरिका' 'छिक्क' = स्पृष्ट) अने २४, १९-२०, २५-२६,
जियाल्लिक (2) २२१-२० (सर्पने २५, १-२मां कपलिका' छे.)
मारवा माटेना औषधिप्रयोगना प्रथिं कृ २०५-२५ शोक्य उपर ते नडे नहीं ते माटे नवी पत्नी
सब धमां 'जिह्वयाल्लिक' आयनी
वात छे) तरफथी गांठ बांधवी (सरखावा
टुपरिका २३३-२९ टोपी (१) 'प्रबन्धचिन्तामणि' १०४-२९,
(वरसादना जलप्रवाहमां नानो ग्रामहट्टकः १७, २३-२४ गामना
बाळक कागळ वगेरेनी जे होडी मुखी (?)
तरावे ते माटे 'टुपरिका' प्रवाचुरडक-मोरिया लक-चुरडक २१४-१७ हमा बहेती मूकवानी बात छे.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316