Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 279
________________ 245 घणी लांबी परंपरा हती अने वर्णन माटे जेम वर्णकामांथी, तेम भाषा माटे औक्ति कामांथी केटलीक तैयार सामग्री मळी रहेती. अने 'प्रबन्धपंचशती ने तो, जेम वस्तुनी बावतमां तेम भाषानी वामतमां पुरोगामी प्रबन्धसाहित्यमांथी सारो एवो लाभ मळेला छे । अनेक प्रयोगा आगला साहित्यमांथी पण तुलना माटे टांकी शकाय तेम छ । जैन सांस्कृत प्रबन्धी अने कथाग्रंथा तथा. टीका थोना संस्कृतनु सर्वांगीण अने व्यवस्थित अध्ययन एक बृहत् प्रयास मागी ले छे । तेमां कोश अने व्याकरण ए बन्ने पासांओनो समावेश यवो जरूरी छे । कोशमां नवा शब्दा अने नवा अर्थो नोंधाय अने व्याकरणमा उच्चारण, जोडणी, समास, शब्दसाधक प्रत्ययो नोमिक अने आख्यातिक विभक्तिप्रयोगो, वाक्यरचना, रूढिप्रयोगो अने विशिष्ट कहेवतोनी नोंध भाय । आमां सातमी-आठमी सदीथी लईने सेोळमी-सत्तरमीं सदी सुधीना साहित्यमाथी काळक्रम अने पायानी बोलीओना भेदने लक्षमा राखीने सामग्रीसंचय थवो जोईए । गमे तेम पण प्राकृतकेअपभ्रशना अने विशेषे तो प्राचीन अने मध्यकालीन गूजराती-राजस्थानी (अने हिन्दी)ना अभ्यास माटे प्रबन्धोमां अने कथाग्रन्थोमां, वृत्तिग्रंथो अने औक्तिकामां अटळक सामग्री भरी पडी छे अने ए दृष्टिए ते साहित्य अमूल्य खजाना जेवु छे । - उपरांत मध्यकालीन लोककथाना अध्ययननी दृष्टिए पण आ प्रबन्धोमांथी घणी सामग्री प्राप्त थाय छे । पंचतंत्रादि लोकप्रिय कथाग्रन्थोमांथी घणी कथाओ 'प्रबन्धपंचयती'मां लीधेली छे । अन्य लोकप्रचलित के जैन परंपरामा प्रचलित कथाओ पण थोडाक फेरफार साथे अहीं स्थान पामी छे । कथाघटकानी परंपरानी तपास करनार माटे प्रबन्धसाहित्य जोवु पण अनिवार्य गणाय । आम जैन रंपरानी दृष्टिए तथा इतिहास अने दन्तकथानी दृष्टिए 'प्रबन्धपंचशती'नुं महत्त्व हावा उपरांत, गूजराती भाषा अने लोककथाओना अध्ययननी दृष्टिए पण तेनु घणु महत्त्व छे । ___ जेमनो उपर निर्देश को ते (१) शब्दसूचि, (२) संदिग्ध अर्थवाळा शन्दो. अने (३) केटलाक नांवपात्र प्रयोगो नीचे आप्यां छे : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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