Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 278
________________ 244 “सामग्रीना वर्गीकरण परत्वे वधु माहिती आपतो छे । तो गुजराती वगेरे भारतीय भाषाओनो अने जैन साहित्यनी परंपरानो जे लाभ सांडेसरा अने ठाकरना कार्यने मळया छे तेथी डेलेउने वंचित रहेQ पडय छे । उपरांत बन्नेनी पसंदगीनी दृष्टिमां पण सारो एवो फरक छ । बन्ने प्रयासने एकबीजाना पूरक गणवाना रहे छ । शुभशीलगणिकृत 'प्रबन्धपंचशती' (इ. स. १४६५)मांथी अहीं आपेली सामग्री पण निःशेषकथननी दृष्टिए तारववानो प्रयास नथी कर्यो, तेम करवा जतां एक स्वतन्त्र ग्रन्थ ज तैयार करवो पडे । अही नमूना रूपे ज केटलाक शब्दो अने प्रयोगो आप्या छे । आमां केटलाक प्रयोगा सीधा कशा फेरफार विना गूजरातीमाथी संस्कृतमां लई लीधेला छे, तो बीजा केटलाक स्पष्टपणे तत्कालीन गुजराती शब्दो अने प्रयोगोने संस्कृतरूप आपीने घडी काढेला छ । संस्कृतमाथी प्राकृतमा आवतां शब्दाना ध्वनिपरिवर्तननां जे व्याक वलणा प्रतीत थाय छे, तेमने यांत्रिकपणे लागू पाडीने प्रचलित गूजराती शब्दनु पूर्वरूप कृत्रिम रीते घडी काढवामां आव्यु छे । तेमां खरेखरा मूळनी कशी चिंता नथी करी, तेम संस्कृत अने गूजराती विभक्तिसम्बन्धो वञ्चेना भेदने अने बदलायेली अर्थछायाओ अने रूढिप्रयोगोने पण अवगण्यां छे. आ दृष्टिए ख्याल आवा माटे 'प्रबन्धपंचशती'मांथी विशिष्ट शब्दानी यादी आपवा: साथे अहीं केटलाक गुजरातीमूलक रूढिप्रयोगा (तेम ज काईक अन्य विशिष्ट प्रयोग) नोंध्या छ । - आमां मुस्लिम राजवीओ साथेना प्रसंगानी वातमां फारसी शब्दाना प्रयोगो छ। जेम के- 'कलन्दर', 'कागद', 'खरशान', 'गाहरि', 'बीबी', 'भूत', 'मसीत', 'मीर', 'मुद्गल', 'मुलाण', 'मुशलमान', 'सुरत्राण', 'हज', 'हरीमज', इत्यादि । 'प्रबन्धपंचशती'मां आपणने एवा अनेक शन्द मळे छे, जेमनो अर्थ अस्पष्ट के अज्ञात रहे छे । आनां विविध कारणो छ । संस्कृतीकरणने लीधे पायानु गुजराती रूप कळवं मुश्केल बने; तत्कालीन गूजराती शब्द अत्यारे वपराशमाथी लुप्त थयो होय के बोलीओमा ज प्रचलित होय; प्रयोग पूर्वना प्रबन्धोनी भाषामांथी लीधी होय पण 'पछीनी लोकभाषामां ते अप्रचलित होय; लहियाओनी भूलथी मूळ शब्दरूप विकृत थईने जळवाई रह्य होय वगेरे । 'प्रबन्धपंचशती'माथी मने जेमनो अर्थ बेठो नथी तेवा शन्दानी एक यादी बुदी तारवीने आपी छे । व्युत्पत्ति के अर्थचर्चानी दृष्टिए को विस्तार कयों नथी । · मुनि जिनविजयजी संपादित 'उक्तिव्यक्तिप्रकरण' के 'औक्तिकसंग्रह'मां आपेली यादीओमां गुजराती-राजस्थानी शब्दा अने प्रयोगानुं जे विशाळ पाया र संस्कृतीकरण थयु होवानुं जोवा मळे छे ते उपरथी कही शकाय के आ जातनी भाषा अने शैलीनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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