Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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तीन अर्धमागधी शब्द जैनधर्म और दर्शन के मूल-स्रोत होने के कारण तो जैज आगम-ग्रंथ अमूल्य हैं ही। इसके अतिरिक्त केवल ऐतिहासिक दृष्टि से भी आगमगत सामग्री का अनेक वित्र महत्त्व सर्वविदित है । भारतीय आय भाषाओं के क्रम विकास के अध्ययन के लिए आगमिक भाषा एक रत्न-भण्डार सी है । इस दृष्टि से अधमागधी को लेकर बहुत-से विद्वानों ने विवरणात्मक, तुलनात्मक और ऐतिहासिक अनुसन्धान किया है. मगर बहुत कुछ कार्य अब भी अनुसंधाया की प्रतीक्षा कर रहा है । विशेष करके अनेक आगमिक शब्दों के सूक्ष्म अर्थ-लेश के विषय में और उनके अधिचीन हिन्दी गुजराती आदि भाषाओं के शब्दों के विषय में गवेषणा के लिए विस्तृत अवकाश है । इस विषय का महत्त्व जितना अर्वाचीन भाषाओं के इतिहास की दृष्ट से है उतना ही अधमागधी को रसिक और परिचित बनाने की दृष्टि से भी है । यहाँ पर तीन अर्धमागधी शब्द की इस तौर पर चर्चा की है. ये शब्द हैं -विदछु डी - 'आटे की लोई,' उत्तुपिय 'चुपडा हुआ, 'चिकना' और पयण - 'कडाही । १ विटुंडी
'नायाध मकहा' अङ्ग के तीसरे अध्ययन अण्डक में मोरनी के अंडों के वर्णन में अंडों को पुष्ट. नि पन्न व्रणरहित, अक्षत और पिठुडी डु'' कहा गया है. इस विशेषण में 'पिटुडी' का अर्थ अभय ? वसू र ने इस प्रकार किया है- 'पिष्टस्यशालिलोहस्य. ५ डी पिण्डा,' फहस्व प उक्त विशेषण का अर्थ होगा चावल क आटे 'चावल के आटे क पिण्ड जैसा श्वेत' ।
पिद?'डी' शब्द गिढ+उडी से बना है. पिट्ठ =संठ 'पिष्ट ' विष्ट का मूल अर्थ है 'पीसा हुआ, बाद में उस अर्थ हुआ चूर्ण' और फिर अन्न का चूग। ‘मराठी 'पीठ' 'आटा, हिन्दी पीठी, गुजराती 'पीठी' आदि का सम्बन्ध इस 'शिष्ट'-'पिठ के साथ है 'नाज के चूर्ण' इस अर्थ वाले 'आटा' 'लोट' (गुजराती) और 'पीठ' इन तीनों शब्दों का मूल अर्थ केवल चूर्ण' था. इनके प्राकृत रूप थे-'अट्ट,' 'लाट' और पिट' ।
शेष 'उडी' का अर्थ है, पिण्डि का' या 'छोटा पिण्ड'. जैसे यहाँ पर 'पिटुड' में 'ड' का प्रयोग 'पिठ' के साथ हुआ है वैसे ओघनियुकितभाष्य में 'ड'का विस्तारित रूप 'उडग. 'मस क साथ (मसांडग) विराकथन
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