Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 233
________________ 199 मेय-वसा--मंसपडल-पोच्चड - पूय-रुहिरुक्किण्ण विलीण-चिक्कण--रसिय...... अहीं अभयदेवसूरिनी वृत्तिमा पोच्चडनो अर्थ 'अतिनिबिड' 'उक्किण्ण' नो अर्थ 'मिश्रित' अने 'विलीणना अर्थ 'जुगुप्सित' आपेलो छ । आथी समग्रनो अर्थ संतोषकारक नथी थतो । अहीं पण पोच्चडने बदले चाप्पड समजीए अने उक्किण्णनो अर्थ उलिन्न 'भीनु, लदबदतु' अने विलीण (के चिलीण) नो अर्थ 'पचपचतु” लइए तो समासनो अर्थ नीचे प्रमाणे थशे : ___ 'मेद' वसा ने मांसना थरथी खरडायेलां, परु ने लोहीथी लदबदतां, पचपचतां ने चीकणा रसवाळी .....' __ आमां वर्णननी सुश्लिष्टता तरत ज जणाई आवशे । पोच्नडनो चोथा अर्थ 'मलिन' कोशमां 'निशीथचूर्णि' ११ उमाथी नोंधायो छे । आ संदर्भ हु जोई शक्यो नथी । पण बाकीना प्रयोगो जोता, अने 'ज्ञाताधर्म' वाळा संदर्भमां मलिण ने पोच्चड साथे छे ते जोता, त्यां पण चाप्पड मूळपाठ होवानी घणी शक्यता छ । पछीनी प्राकृत, अपभ्रश, प्राचीन गुजराती अने अर्वाचीन भाषाओमां चेप्पिड के साधित शब्दोना बहोळा प्रयोग थयेलो छ । 'सुपासणाहचरिय' (१२मी शताब्दी)मां कणयोप्पडाइय 'दाणा, घी, तेल वगेरे' प्रयोग मळे छे. अपभ्रंश काव्य 'जसहरचरिउमाँ डड्ढउ चोप्पड पुणु मइ डह (२, २४, ३) 'वळी बळयु घी-तेल बाळे छे. । एवो प्रयोग छे. स्वयंभूना अपभ्रंश महाकाव्य पउमचरिउमा चोप्पड घीना अर्थमां वपरायो छे. रणसंग्रामने भोजननु रूपक आपतां चक्रने घीनी धार कही छेः मुक्केषक-चक्क- चेाप्पडय-धारु (५८, ६, ४) 'जेमा एक चक्ररूपी घीनी धार छाडवामां आवे छे ।' 'योगप्रदीप'नी प्राचीन गुजराती टीकामां घी जेवो स्निग्ध पदार्थो'ना अर्थ मां चापड वपरायो छ । भने नेह चेपड आनदरूपीउ अमृत, तेणई' करी नई चेपिड पूरीह (लोक ४३ उपरनी टीका) । दीवामां घी पूरवानी अहीं वात छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316