Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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वस-रुहिर-पूय-मंस-मल-मलिण-पोच्चड-त! अहीं ‘वसा, रुधिर, परु, मांस अने मळथी मलिन तनु (ऐटले शरीर) एटलु तो बरोबर छे. पण जे पोच्चड एवो पाठ छे, ते शुद्ध पाठ जणातो नथी । अभयदेवसूरि अहीं पोच्चडना अर्थ विलीन पीगळेलु' करे छे ।' पण तेने माटे कशो आधार नथी । पाच्च, पोच्चड आगमसाहित्यमांथी तेम ज अन्यत्र प्राकृत साहित्यमांथी जाणीता छे । त्रीजा 'कूम' ज्ञातमा ज पोच्चड वपरायो छे । ढेलना ईडाने वारंवार हलाव्यु-खखडाव्यु तेथी ते पाच्चड थई गयु. अहीं अभयदेवसूरि तेना अर्थ असार करे छे । पण ते भावार्थ छे । हेमचंद्रे 'देशीनाममाला'(६,६०) मां पोच्च शब्द 'सुकुमार' अर्थमां नोंध्या छे । गुजराती पोचु शब्द आमांथी ज सधायो छे। एटले पोच्च, पोच्चड एटले ‘पोचु', 'नरम', 'कूणु'. ई डु। वारवार हलाव्याथी पोचु पडी गयु, परिणामे असार थई गयु । पोच्चडना आ ज अर्थ छ । प्राकृत कोशमां पोच्चडना बीजा वे अर्थ 'मलिन' अने 'अतिनिबिड' नांधाया छे । तेने आगळ विचार करीशु ।
हवे आरंभमां आपेला 'ज्ञाताधर्मकथा'ना टांचणमा पोच्चडना अर्थ 'पाचु" लेतां ए विशेषण -समासना कशो संतोषकर अर्थ" थता नथी. विचार करतां लागे छे के अहीं पाठ पोच्चड नहीं पण चाप्पड जाईए. पोच्चडनो व्यत्यय थई कोई कारणे प्रमादथी अहीं चाप्पड थई गयु छे । चेप्पिड धातु हेमचंद्राचार्य नक्ष लीपq 'चोपडवु', खरडवू' अर्थमां नांध्यो छे ('सिद्धहेम'-८, ४, १९१, तथा 'देशीनाम माला' ३, १९ उपरनी वृत्तिमा । प्राकृत कोशोए पण चेप्पिडिय- 'चोपडेलु' अने चप्पिड' 'तेल जेवो स्निग्ध पदार्थ' ए प्रयोगो नेांध्या छे. एटले अहीं पोच्चडने बदले 'चोप्पड पाठनी अटकळ करतां अर्थ नीचे प्रमाणे थशे :
"चरबी. लही, परु, मांसना गंदवाडथी मलिन अने खरडायेला शरीरवाळो. ।' आनुं औचित्य उघाडु छे ।
आवी ज परिस्थिति 'प्रश्नव्याकरण'ना एक संदर्भ मां छे । प्राकृत कोशोमां पोच्चडना एक अर्थ 'अतिनिबिड' आपेलो छे । आनो आधार छे 'प्रश्न: व्याकरण'मांनो एक प्रयोग अने अभयदेवमरिए करेलो तेनो अर्थ । संदर्भ प्राणिवध करनाराओ जे नरकमां पीडा भोगवे छे, ते नरकना वर्णनना छ। ए नरकोना एक विशेषणमां नीचेना शब्दो छ : १. अथवा जुगुप्सित । जुओ आगळ 'प्रश्नव्याकरण'मांना संदर्भनी चर्चा
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