Book Title: Sramana 2000 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 16
________________ इस वर्गीकरण में सामुख और निरामुख आगमिक निक्षेप के मूल प्रारूप हैं तथा 'दव्वो' और 'दव्व-लोग' सामख के उपप्रकार हैं। इसके माध्यम से डॉ० बंशीधर भट्ट ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि आगमिक और उत्तरआगमिक साहित्य में निक्षेप कहीं तो व्यवस्थित रूप से (With Programme) आये हैं और अन्यत्र निक्षेप का स्वरूप प्राप्त तो होता है लेकिन उसमें स्पष्टत: निक्षेप शब्द का उल्लेख नहीं है। डॉ० भट्ट के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि उन्होंने निक्षेप के पारम्परिक शब्दों (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव) के अतिरिक्त भी अन्य बहुत से शब्दों के आधार पर शब्द विशेष का वर्गीकरण किया है। आगमों में प्रतिपादित निक्षेप विषयक समस्त सिद्धान्त को इस लेख में समाविष्ट करना सम्भव नहीं है, इसके लिए एक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। सन्दर्भ : १. स्याद्वादमंजरी, पृष्ठ २४३. २. जीतकल्पभाष्य, ८०९. 3. The Canonical Niksepa, Studies in Jaina Dialectics, Banshidhar ___Bhatt, Bharatiya Vidya, Prakashan, 1991, p. 40. ४. धवला, १/१/१/१, गा० ११/१७. ५. तिलोयपण्णत्ति, १/८३. ६. नयचक्रवृत्ति, २६९. ७. धवला, १४/५-६, ७१/५१/१४. ८. डॉ० सागरमल जैन, जैनभाषा दर्शन, पृष्ठ ७७. ९. जैन तर्कभाषा, निक्षेप परिच्छेद, पृष्ठ ६३. १०. वही, पृष्ठ ६४. 11. The Canonical Nikṣepa, Bharatiya Vidya, Prakashan, 1991, p.40. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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