________________
निक्षेप के उदाहरण हैं। तदाकार एवं अतदाकार स्थापना निक्षेप के काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोत्तकर्म, लोप्यकर्म, लयनकर्म, शैलकर्म, गृहकर्म, भित्तिकर्म और वाराटक आदि भेद किये गये हैं।
नाम एवं स्थापना निक्षेपों में अन्तर - यद्यपि नाम और स्थापना दोनों निक्षेपों संज्ञा रखी जाती है, क्योंकि बिना नाम रखे स्थापना नहीं हो सकती, फिर भी स्थापित अर्हन्त, ईश्वर आदि की प्रतिमाओं में जो आदर और अनुग्रह की अभिलाषा होती है, वह नामनिक्षेप में नहीं है।
द्रव्य निक्षेप - जो अर्थ या वस्तु पूर्व में किसी पर्याय या अवस्था में रही हो अथवा भविष्य में भी किसी पर्याय या अवस्था में रहने वाली हो, उसे वर्तमान में भी उसी नाम से संकेतित करना द्रव्य निक्षेप है। जैसे कोई व्यक्ति पहले कभी अध्यापक था, किन्तु वर्तमान में सेवा निवृत्त हो चुका है तब भी उसे अध्यापक कहना यह द्रव्यनिक्षेप है अथवा उस विद्यार्थी को भी डाक्टर कहना जो अभी डॉक्टरी पढ़ रहा हो, द्रव्य निक्षेप है । १०
वस्तुतः आगामी पर्याय की योग्यता वाले उस पदार्थ को द्रव्य कहते हैं जो उस समय उस पर्याय के अभिमुख हो अथवा अतद्भाव को द्रव्य कहते हैं जैसे— इन्द्र प्रतिमा के लिए लाए गए काष्ठ को भी इन्द्र कहना। द्रव्य का अर्थ ही है जो अपने गुणों व पर्यायों को प्राप्त होता है, हुआ था और होगा। अतः तदनुसार राजा के श्रमण अवस्था में रहने पर उसे राजा कहना द्रव्य निक्षेप है।
भावनिक्षेप
‘वर्तमानतत्त्वपर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भाव: ।' अर्थात् वर्तमान पर्याय
युक्त द्रव्य को भाव कहते हैं । अतः भाव निक्षेप का अर्थ है - जिस अर्थ में शब्द का व्युत्पत्ति या प्रवृत्ति निमित्त अर्थ सम्यक् प्रकार से घटित होता हो, वह भाव निक्षेप है जैसे- किसी धनाढ्य व्यक्ति को लक्ष्मीपति कहना, या शिक्षण दे रहे व्यक्ति को शिक्षक कहना आदि ।
यहाँ ध्यान देने योग्य है कि द्रव्यनिक्षेप एवं भाव निक्षेप में संज्ञा, लक्षण आदि की दृष्टि से भेद है । द्रव्य निक्षेप तो भाव अवश्य होगा किन्तु भाव द्रव्य हो यह आवश्यक नहीं। क्योंकि हो सकता है उस पर्याय में आगे योग्यता रहे भी और न भी रहे। आज भी हम महाराज बनारस और महाराजा ग्वालियर जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं किन्तु आज इन शब्दों का वाच्यार्थं वह नहीं है जो १९४७ के पूर्व था । वर्तमान में इन शब्दों का वाच्यार्थ द्रव्यनिक्षेप के आधार पर निर्धारित होगा जबकि उस समय वह भावनिक्षेप के आधार पर निर्धारित होता था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org