Book Title: Sramana 2000 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 13
________________ समभाव रखता है वही सामायिक का सच्चा अधिकारी है। जिस प्रकार मुझे दुःख प्रिय नहीं है, वैसे ही अन्य प्राणियों को भी दःख प्रिय नहीं है, ऐसा जानकर जो न किसी अन्य प्राणी का हनन करता है, न करवाता है और न करते हुए की अनुमोदना ही करता है वह श्रमण है, आदि। सूत्रालापक निक्षेप वह है जिसमें ‘करेमिभंते सामाइयं' आदि पदों का नामादि भेदपूर्वक व्याख्यान किया गया है। इसमें सूत्र का शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण करने की सूचना दी गयी है। श्लोकवार्तिक में निक्षेप के अनन्त भेदों की चर्चा की गयी है'नन्वनन्त: पदार्थानां निक्षेपो वाच्य इत्यसन्। नामादिष्वेव तस्यान्तर्भावात्संक्षेपरूपतः।' और कहा गया है कि उन अनन्त निक्षेपों का संक्षेप रूप से चार में ही अन्तर्भाव हो जाता है अर्थात् संक्षेप से निक्षेप चार हैं एवं विस्तार से अनन्त। चार निक्षेप नाम निक्षेप- व्युत्पत्तिसिद्ध और प्रकृत अर्थ की अपेक्षा न रखने वाला जो अर्थ माता-पिता या अन्य व्यक्तियों के द्वारा किसी वस्तु को दे दिया जाता है वह नाम निक्षेप है। नाम निक्षेप में न तो शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ, और न प्रचलित अर्थ या उसके नाम के अनुरूप गुणों पर विचार किया जाता है अपितु मात्र वस्तु को संकेतित करने के लिए उसका कोई नाम रख दिया जाता है, जैसे- कुरूप व्यक्ति का नाम सुदर्शन। अत: नाम किसी व्यक्ति या वस्तु को दिया गया वह शब्द संकेत है जिसका अपने प्रचलित अर्थ, व्युत्पत्तिपरक अर्थ और गुणनिष्पन्न अर्थ से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। एक तथ्य जो ध्यान देने योग्य है वह यह कि नाम निक्षेप में कोई भी शब्द पर्यायवाची नहीं माना जा सकता क्योंकि उसमें एक शब्द से एक ही अर्थ का ग्रहण होता है। स्थापना निक्षेप- किसी वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र में उस मूलभूत वस्तु का निरूपण ही स्थापना निक्षेप है, जैसे- जैन प्रतिमा को जिन, बुद्ध प्रतिमा को बुद्ध, तथा नाटक के पात्र आदि स्थापना निक्षेप के उदाहरण हैं। यह दो प्रकार का होता है (१) तदाकार स्थापना निक्षेप (सद्भाव स्थापना निक्षेप) (२) अतदाकार स्थापना निक्षेप (असद्भाव स्थापना निक्षेप) वस्तु की आकृति के अनुरूप आकृति में उस वस्तु का आरोपण करना यह तदाकार स्थापना निक्षेप है, जैसे- गाय की आकृति के खिलौने को गाय कहना। अतदाकार निक्षेप उसे कहते हैं जब जो वस्तु अपने मूलभूत वस्तु की प्रतिकृति तो नहीं है किन्तु उसमें उसका आरोपण कर उसे उस नाम से पुकारा जाता है तो वह तदाकार स्थापना निक्षेप है, जैसे- शतरंज की मोहरों में मन्त्री, राजा, वज़ीर आदि का आरोपण अतदाकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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