Book Title: Shursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Author(s): Sangita Sinh
Publisher: Research India Press

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Page 11
________________ आमुख जैन धर्म भारत में श्रमण संस्कृति का वह महत्वपूर्ण अंग है जो प्राचीन काल से आज तक अक्षुण्ण बना हुआ है। समय एवं विपरीत परिस्थितियों के अनेक थपेड़े सहकर भी जैन मतावलम्बियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने का पूर्ण प्रयास किया और भारतीय संस्कृति के बहुमुखी विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शूरसेन जनपद प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में एक प्रमुख जनपद था जिसकी राजधानी मथुरा थी। भगवान कृष्ण के जन्म स्थान के कारण मथुरा को भारत की हृदय-स्थली स्वीकार किया गया है। शूरसेन जनपद में जैनधर्म का विकास महावीर युग से लेकर बारहवीं शताब्दी तक का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। जैन धर्म का विकास कला एवं साहित्य के द्वारा ज्ञात होता है। पुरातात्विक अवशेषों के अध्ययन से शूरसेन जनपद में जैन धर्म की समुन्नत स्थिति ज्ञात होती है। ___ मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित जैन कलाकृतियों के अध्ययन से जैन धर्म का क्रमिक विकास दृष्टिगोचर होता है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में कुल आठ अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में विषय के महत्व पर प्रकाश डाला गया है तथा साथ ही अध्ययन स्रोत की भी चर्चा की गई है। विषय का महत्व इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है कि शूरसेन जनपद सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध रहा है। सर्वप्रथम मथुरा कला शैली के अन्तर्गत जैन प्रतिमाओं में लांछन उत्कीर्ण किया गया है जिससे प्रतिमाओं को चिन्हित किया जा सकता है।

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