Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दिसम्बर - २०१३ पहेला करतां वधु रसप्रद थइ जाय छे. पण, आ संपूर्ण आधार कथाकार व्यक्ति पर रहेलो छे.
हाल पण आवा नाना-मोटा कथाग्रंथोनुं आलेखन थाय छे. तेमानां केटलाक कथाग्रंथो पूर्वना कथाग्रंथोनी जेम सरळ उपदेशक थाय छे. ज्यारे केटलाक कथाग्रंथो लेखकनी मानसिक विकृतिने कारणे गुणपोषक के दोषनाशक थवाने बदले दोषने जन्मावनारा थाय छे. कथा श्रवण-वाचनचं महत्त्व:
कथानुं महत्त्व बे रीते समजी शकाय - [१] प्रत्यक्ष [२] परोक्ष.
(१) प्रत्यक्ष रीते - [A] आवा प्रकारचें साहित्य अन्य साहित्य करतां रसप्रद वधु होय छे तेथी वाचवू गमे छे परिणामे ते-ते भाषानुं प्रभुत्व सहज रीते ज वधारवामां उपयोगी थाय छे.
[B] माणसे जीवनमां क्यारे? केम जीवq? केवी रीते जीवq? - ते उपदेश प्राप्त थाय छे.
(२) परोक्ष रीते - [A] सामा माणसने कोई वात जणाववी-उपदेशवी होय तो ते आ कथाना माध्यमे सहज रीते जणावी शकाय छे.
पञ्चतन्त्रम्-हितोपदेशः-कथाकोशः-बृहत्कथासागर-कथारत्नाकर जेवा ग्रंथो आवा उपदेशप्रद कथाना ग्रंथो छे.
[B] सिद्धांत ग्रंथो न्याय-व्याकरण-दर्शन वगेरे विषयना] ना अटपटा-क्लिष्ट पदार्थोने कथाना माध्यमे सरळ रीते समजावी-याद रखावी शकाय छे.
काचं मणिं काञ्चनमेकसूत्रे, ग्रन्थासि बाले! किमिदं विचित्रम् । विद्वान् मुनि-पाणिनिरेकसूत्रे, श्वानं युवानं मघवानमाह ।।
उपरोक्त लघुदृष्टांतमा व्याकरणना 'श्व-युव-मघोनामतद्धिते' सूत्रने सरस रीते जणाव्युं छे. ते ज रीते.
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाऽहं, मदगेहे सदाऽव्ययीभावः। तत्पुरुष! कर्म धारय, येनाऽहं स्यां बहुव्रीहि: ।।
उपरनी श्लोकगत कथा पण समासना नामोने याद राखवामां एटली ज उपयोगी छे.
[C] कथागत पदार्थो-वर्णनो-ते ते काळनी लोक-समाजव्यवस्था-नगररचनानुं परोक्ष [आडकतरुं] ज्ञान आपता होय छे.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84