Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ आवे छे. आ कोष हाल क्यांय पण दृष्टिगोचर थतो नथी. धनपाळना लघु बंधु शोभन मुनिए यमकालंकारमय २४ तीर्थंकरोनी जे स्तुतिओ रची छे ते शोभनस्तुति नामे प्रसिद्ध छे. ते स्तुति पर धनपाले संस्कृत टीका रची छे. ते टीकामां ते जणावे छे के-१ दिसम्बर २०१३ अब्जायताक्षः समजायताऽस्य श्लाघ्यस्तनूजो गुणलब्धपूजः । स शोभनत्वं शुभवर्णभाजा न नाम नाम्ना वपुषाप्यधत्त ||३|| कातंत्रचंद्रोदिततंत्रवेदी यो बुद्धबौद्धार्हततत्त्वतत्त्वः 1 साहित्यविद्यार्णवपारदर्शी निदर्शनं काव्यकृतां बभूव ||४|| कौमार एव क्षतमारवीर्यश्चेष्टां चिकीर्षन्निव रिष्टनेमेः । यः सर्वसावद्यनिवृत्तिगुर्वी सत्यप्रतिज्ञां विदधे प्रतिज्ञाम् ।।५।। अभ्यस्यता धर्ममकारि येन जीवाभिघातः कलयापि नैव । चित्रं चतुः सागरचक्रकाञ्चिस्तथापि भूर्व्यापि गुणस्वनेन ||६|| एतां यथामति विमृश्य निजानुजस्य तस्योज्ज्वलां कृतिमलंकृतवान् स्ववृत्त्या । अभ्यर्थितो विदधता त्रिदिवप्रयाणं तेनैव सांप्रतकविर्धनपालनामा ।।७।। अंते कृतिरियं तस्यैव ज्येष्ठभ्रातुः पंडितधनपालस्य । ते उपरांत प्राकृतमा २० गाथामां श्रावकविधि ( पाटण. सूचि नं. २६) तथा प्राकृतमां ५० गाथामां ऋषभदेवप्रभुनी स्तुति रची के जे ऋषभपंचाशिका'ना नामे ओळखाय छे. वळी विरोधालंकारवाळी' श्री महावीरस्तुति, अने सत्यपुरीय श्री महावीर उत्साह नामनुं स्तुतिकाव्य तत्कालीन अपभ्रंश भाषामां रचेल छे, जे केटलीक ऐतिहासिक हकीकत रजु करे छे. अर्थ संस्कृत - प्राकृतमय स्तोत्र अस्मदीय जैन स्तोत्रसंदोहमां मुद्रित छे. धनपाळ माटे अन्य कविओ आ प्रमाणे मानपूर्वक उल्लेख करे छे - For Private and Personal Use Only १. पहेला बे श्लोक पोताना पिताह तथा पितासंबंधमां, तिलकमंजरीमां आप्या ते प्रमाणे छे. २. आ स्तुति अनेक स्थळे मुद्रित थयेल छे. तेना उपर पादलिप्ताचार्यकृत तरंगलोलानो संक्षेप करनार हारिजगच्छना वीरमद्रना शिष्य नेमिचंद्रे टीका रची छे. (कां. वडो) ३. आ बन्ने स्तोत्रो जैन साहित्य संशोधक खंड ३, अंक ३मां पृ. २९५ अने २४१ पर विवेचन सहित प्रसिद्ध थयेल छे. वे. नं. १८२२ मां सं. वीरस्तवसावचूरि नोंघेल छे.

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