Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - ३५ ६१ ग्रं. नं. ६) तथा सं. १२५८ मां तथा सं. १२४५मां जिनवल्लभसूरिगीत रचेल छे. आ श्रेष्ठीना पुत्र सं. १२२५मां दीक्षा लइ पछी जिनपतिसूरिना पट्टधर जिनेश्वरसूरि नामे प्रसिद्ध था. www.kobatirth.org १७. संग्रामसिंह - आ मांडवगढना प्रसिद्ध ओसवाळ अने माळवाना महमद खीलजीना मानीता विश्वासपात्र भंडारी हता. एमणे सं. १५२०मां बुद्धिसागर नामनो सर्वमान्य अत्युपयोगी ग्रंथ रच्यो (का. वडो, बुह २ नं. २९६) जे थोडां ज वर्षो उपर मुद्रित थयेल छे. - १८. . मंडनमंत्री ए श्रीमाल वंशमां स्वर्णगिरीयक (सोनगरा) गोत्रमां जावालपत्तन (जालोर) ना मूळ वती हता. अने वंशपरंपराथी माळवाना मंडपदुर्ग (मांडु) ना मंत्री हता. तेओ चौदमी सदीनी अंते अने पंदरमी सदीना प्रारंभमां थयेल छे. सं. चाहड़ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंडनमंत्रीना समकालीन-आश्रित महेश्वर नामना पंडिते विद्वान् मंडनने कहेवासांभळवा माटे रचेला काव्यमनोहरमां मंडननी वंशावली आपेल छे. ते त्यांथी अगर मो. द. देशाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ. ४७६ थी अथवा विज्ञप्तित्रिवेणीनी भूमिकामांथी जिज्ञासुओए जोइ लेवी. लंबाणना भये अहीं मात्र वंशवृक्ष रजु करूं छं - चंद्र आभू- अभयद-आंबड - सहणपाळ - नैणादुसाजक-वीका - झाजण अने झाझण पछी झाझणा बाहड सं, देहड सं. पत्री, सं. आल्हा मंडन क्षेमराज समुद्र (समधर) धन्यराज, ( धनराज, धनद, धनेश) सं. पाहु For Private and Personal Use Only सं. जीजी सं. संग्राम सं. श्रीमाल. सं. पूजा मंडन जेवो विद्वान् हतो तेवो धनी पण हतो. एणे पोताना ग्रंथोमां पोतानुं नाम जोड्युं छे, ने तेमां मंडननो अर्थ भूषण पण लइ शकाय. मंडनना ग्रंथो आ छे

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