Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केटलीक अप्रगट लघुकृतिओ ___ मुनिश्री प्रियंकरप्रभविजय जैन साहित्यमां कदथी नहीं, पण कृतिसंख्याथी विशाळखंड रोकनार कोइ साहित्य-प्रकार होय तो ते छ स्तुति-चैत्यवन्दन-स्तोत्र साहित्य, संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश-गुजराती-मारुगुर्जर जेवी भाषामां व्यापकपणे अने फारसी-समसंस्कृत-प्राकृत-अष्टभाषामां आ रचनाओ ओछी प्राप्त थाय छे. आवी रचनाओमां रचना कौशल्य-भाषाज्ञान (प्रभुत्व) के पाण्डित्य करतां पण कर्तानी परमात्मभक्ति वधु प्रतिबिंबित थती होय छे. अने ए ज कर्तानो कृति रचनानी पाछळनो उद्देश होय छे. उपा. श्री पद्मविजयजी म. नी 'जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग' ए पंक्तिनो भाव आवा प्रकारनी काव्यरचनानुं प्रेरक बळ छे. हृदयमां परमात्माना दर्शनथी जागेला आनंद अने अहोभावमाथी शब्दो अनायासे फूटी नीकळता होय छे. हृदयनो भाव व्यक्त थई जतो होय छे. रचनामां प्रयुक्त थती कविनी कौशल्य (अलंकार/छंद) योजना दूधमां भळती साकरनी जेम काव्यनी रसाळता-हृदयंगमता वधारनारी होय छे. आचार्य श्री नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानमंदिर-सूरतमाथी प्राप्त त्रण छूटक पत्रोमां लखायेली आवी केटलीक रचनाओ अहीं प्रस्तुत छे - पत्र-9: "पंच परमेसरा, परम अलवेसरा, विश्ववालेसरा, विश्वव्यापी ए स्तवन पंक्तिमां स्तवायेला-२४ जिनेश्वरमांना ५ जिनेश्वरोनी स्तुति आ कृतिमां गूंथायेली छे. मणिविजयजी नामना गुरुभगवंते आ रचना करी छे. कृतिमां कर्त्ताना समयनी के गुरुपरंपरानी कोइ नोंध नथी. कदाच आ गुरुभगवंत तपागच्छाधिराज श्री मुक्तिविजयजी म. ना शिष्य मुनि श्री गुलाबविजयना शिष्य होय. जेमनी देरी घेटीपाग (पालिताणा)मां छे. विशेष तपास करवी घटे. प्रस्तुत कृति नागनेश गामना निवासी शेठ रुगनाथजीए लखावी छे. बोटादथी तेतालीस कि. मी. अने राणपुरथी सात कि.मी. दूर 'नागनेश' गाम छे. त्यां बिराजमान परमात्मानी अनेक विशेषणोथी स्तुति करी छे. परमात्मानी स्तुति एज आ कृतिनो मुख्य सार के वैशिष्ट्य गणि शकाय एम छे. पत्र-२: प्रस्तुत पत्रमा त्रण लघुरचनाओ लखायेली छे. - (१) पार्श्वनाममाला स्तोत्र, (२) वर्त्तमानचतुर्विंशतिका-शाश्वतजिनस्तव, (३) वीसविहरमानजिनस्तव. For Private and Personal Use Only

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