Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - ३५ www.kobatirth.org तित्थयर- चक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेव मंडलिया । जायंति जगहिया, सुपत्तदाणप्पभावेण ||१०१ || [] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ बने फळ पू. आ. श्री सोमप्रभसूरिजी ए 'सिन्दूरप्रकर' नामक ग्रंथमां पण जणाव्या छे. तस्याऽऽसन्ना रतिरनुचरी, कीत्तिरुत्कण्ठिता श्रीः, स्निग्धा बुद्धिः परिचयपरा चक्रवर्त्तित्व ऋद्धिः । पाणौ प्राप्ता त्रिदिवकमला, कामुकी मुक्तिसम्पत्, सप्तक्षेत्र्यां वपति विपुलं वित्तबीजं निजं यः ||८०|| - [४] दान प्रकार दानविषयक विविध ग्रंथोमां दानना प्रकार ऋण रीते लख्या [ जणाव्या] होय तेवु लागे छे. [A] दानद्रव्यने आश्रयीने [B] दानलेनारने आश्रयीने [C] दान आपनारना भावने आश्रयीने. - १५ [A] दानद्रव्यने आश्रयीने दानमां अपाती वस्तु द्रव्यने नजर सन्मुख राखी आ विभाजना थाय छे. 'उपदेशमाळा, दानप्रकाश' वगेरे ग्रंथमां आ प्रकारना दाननी वातो छे. वसति [ आवास], शय्या [ शयन], आसन, भोजन, जळ, औषध, वस्त्र, पात्र ए आठ वस्तुना नाम ते ग्रंथोमां छे 'दानप्रकाश' ग्रंथमां तो ते-ते दानसंबंधी कथाओ पण छे. [B] दानलेनारने आश्रयीने व्यक्तिनी योग्यताना आधारे आ प्रकारनुं दान अपाय छे तेना मुख्य बे भेद छे. [१] पात्रने अपातुं दान [२] अपात्र ने अपातुं दान. पात्र शब्द अंगे 'उपदेशतरङ्गिणी १/४५ ' मां जणाव्युं छे के - 'पात्रं तदुच्यते, यत् तरणतारणप्रवणम् । यथा मज्जनशीलं ताम्रं पात्रीभूतं स्वयं तरति तारयति च स्वाश्रितवस्तुजानम् । पात्रपरीक्षायामप्येवं प्रोक्तमस्ति । · For Private and Personal Use Only अर्थ- जेम डूबवाना स्वभाववाळु तांबुं जो पात्र - नौका बने तो पोते तरे अने बीज तारे. ते कर्मना वशथी डूबतो आत्मा धर्मनी सहायथी [ नौका बनी], पोते तरे अने बीजाने तारे तो तेने पात्र कहेवाय. आज वातने एज ग्रंथमां पद्यमां गुंथी छे. ए आ प्रमाणे -

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