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केटलांक प्राचीन चित्कोशनी नोंध
हिरेन के. दोशी
श्रुतसागर अंक नं. ३०मां नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमंदिरमां संगृहीत पूज्य महोपाध्यायजी म. सा. ना चित्कोशने जणावती हस्तप्रतनी एक महत्त्वपूर्ण प्रशस्ति प्रकाशित थयेल, ए प्रकारनी प्रशस्तिने अनुसरतो खास करीने प्राचीन चित्कोशोना उल्लेखवाळो आलेख अत्रे प्रकाशित करेल छे. आ प्रतो ज्ञानमंदिरमां संगृहीत छे, अने प्रत क्रमांक अनुसार ज अत्रे ए प्रशस्तिओ उतारी छे. हस्तप्रतक्रमांक साथे कृति अने पत्रसंख्यानी विगतो अत्रे प्रकाशित करी छे.
आम तो आ प्रशस्तिओ पूर्वकाळमां स्थापित ज्ञानभंडारो अने चित्कोशोनी हयाती उपर खास करीने प्रकाश पाडे छे. प्राचीन समयमां लखायेल प्रतो पाछळना समये भंडारमां मूकायानी विगतो पण जाणवा मळे छे. तो प्रतिलेखक द्वारा के श्रावक श्रेष्ठिओ द्वारा हस्तप्रतोनुं संरक्षण अने संग्रहण करवामां आव्युं छे. आवी तो केटलीय नोंध हस्तप्रतोनी साथे आनुषंगिक रूपे जाणवा मळे छे. आ नोंध आम तो साव सामान्य गणी शकाय एम छे, परंतु आ प्रकारनी सूचिथी जैन परंपरामां स्वाध्याय, अने साहित्यनी भूख अने रुचि अने एना कारणे आवा प्रकारना विशाळ चित्कोश स्थापना विगेरे जाणी शकाय ए ज हेतुसर आ लेख अत्रे प्रकाशित कर्यो छे,
9. वासुपूज्य चरित्र, प्रतक्रमांक-१०१८, पत्रसंख्या ३०५
तपागच्छनायक श्रीजयचंद्रसूरिशिष्य प्रभु श्री सोमजयसूरिशिष्य श्री श्रीपरमगुरु श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री इंद्रनंदिसूरिशिष्य माणिक्यमेरुगणिना चित्कोशे 'मुक्ता श्री वासुपूज्यचिरित्र प्रतिश्चिरं श्रेयसे भवतु || श्रीमदागमनिममरसिकानां ।। 2. पंचकल्पचूर्णि, प्रतक्रमांक - १०२२, पत्रसंख्या- ७३
संवत् १६७१ वर्षे आषाढ वदि १३ रवौ पातसाहि श्री अकबरप्रतिबोधक सुविहितश्रृंगारहार सुगृहीतनामधेय जगद्गुरुभट्टारक पुरंदर भट्टारक श्री ५ श्रीहीरविजसूरीश्वरपट्ट पूर्वाचलचित्रभानुभट्टारक श्री ५ श्री विजयसेनसूरीश्वरविजयमान राज्ये आचार्यश्री ५ श्री विजयदेवसूरि विराजमाने उपाध्याय श्री ५ श्री कल्याणविजयगणीनामुपदेशेन श्री अहम्मदावादवास्तव्य वृद्वशाखीय ऊकेशज्ञातीय सा. समरसिंघ भार्या बा. हंसाई सुतेन श्रीजिनशासने प्रवर्तमान विशेषग्रंथ संग्रहं कुर्वता सा.
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